केतु का गोचर
ज्योतिष शास्त्र में केतु ग्रह अपनी अलग अहमियत रखता है। केतु के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। यह आपकी कुंडली में जिस भाव में बैठा है उसको तो प्रभावित करता ही है साथ ही सप्तम दृष्टि से यह जिस भाव को देखता है उसपर भी असर डालता है। ज्योतिष शास्त्र में केतु को अशुभ ग्रह का दर्जा दिया गया है लेकिन इसके प्रभाव हमेशा बुरे नहीं होते। केतु के असर से व्यक्ति में आध्यात्मिक प्रवृति पैदा होती है और वह तंत्र विद्या में पारंगत हो सकता है। केतु को मयावी ग्रह माना जाता है इसलिये इसके प्रभाव से इंसान में गुढ़ विद्याएं जानने की इच्छा पैदा होती है। केतु की दशा और अन्तर्दशा के दौरान जीवन में कोई न कोई परेशानी जरुर आती है इसलिये ऐसे समय में संभलकर रहना चाहिये।
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वैदिक ज्योतिष में केतु ग्रह
वैदिक ज्यातिष में केतु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व हासिल नहीं है, लेकिन राशिचक्र की नवम राशि धनु इसकी उच्च राशि है जबकि मिथुन में यह नीच अवस्था में रहता है। यदि किसी जातक की कुंडली में केतु देवताओं के गुरु कहे जाने वाले बृहस्पति ग्रह के साथ विराजमान है तो इस युति से राज योग का निर्माण होता है। कुंडली में यदि केतु बली अवस्था में है तो ऐसे जातकों के पैर मजबूत होते हैं। यदि केतु की स्थिति कुंडली में सही नहीं है तो ऐसे जातक के जीवन में समस्याएं आती रहती हैं।
केतु गोचर का फल
कुंडली में जिस भी भाव में केतु विराजमान होता है उस भाव को प्रभावित करते है। हर भाव में केतु के गोचर का फल अलग मिलता है। तृतीय, पंचम, षष्ठम, नवम और द्वादश भावों में केतु अच्छे फल देता है। ज्योतिष शास्त्र में केतु को समाज सेवा, धर्म, आध्यात्म आदि का कारक माना जाता है। यदि आपकी कुंडली में केतु की स्थिति अच्छी नहीं है तो आप नाना या मामा के प्यार से वंचित हो सकते हैं। सूर्य और चंद्र को केतु का शत्रु माना जाता है, जबकि शनि , शुक्र केतु के मित्र माने जाते हैं। आइये अब जानते हैं कि कुंडली के विभिन्न भावों में केतु गोचर से क्या फल प्राप्त होते हैं।
प्रथम भाव में केतु का गोचर: लग्न भाव में केतु के गोचर से व्यक्ति को रोग लग सकते हैं। ऐसा व्यक्ति चिंताओं से घिरा रहता है और पारिवारिक जीवन में भी परेशानी रहती है। अपने जीवनसाथी के स्वास्थ्य को लेकर भी ऐसे जातकों को चिंताएं बनी रहती हैं। हालांकि लग्न में वृश्चिक राशि हो तो अच्छे फल मिलते हैं।
द्वितीय भाव में केतु का गोचर: कुंडली के द्वितीय भाव में यदि केतु हो तो व्यक्ति अपने विरोधियों से पराजित होता है। ऐसा व्यक्ति सत्य पर पर्दा डालने की कोशिश करता है और किसी के साथ धोखा भी कर सकता है। कार्यक्षेत्र में भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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तृतीय भाव में केतु का गोचर: तृतीय भाव में केतु स्थित हो तो व्यक्ति का जीवन खुशहाल रहता है और अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति परोपकारी होता है और समाज कल्याण के लिये काम करता है। परिवार की स्थिति भी अच्छी रहती है।
चतुर्थ भाव में केतु का गोचर: चतुर्थ भाव में स्थित केतु अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे व्यक्ति के जीवन में माता का सुख कम होता है। हालांकि केतु यदि शुभ ग्रह के साथ है तो व्यक्ति दीर्घायु होता है और माता-पिता का प्रेम मिलता है।
पंचम भाव में केतु का गोचर: इस भाव में केतु के होने से व्यक्ति निर्धन हो सकता है। हालांकि संतान का सुख भी ऐसे जातकों को प्राप्त होता है। ऐसे लोगों को घूमने-फिरने में आनंद आता है। पेट से संबंधी समस्याएं ऐसे जातकों को हो सकती है।
षष्ठम भाव में केतु का गोचर: षष्ठम भाव में केतु अच्छे फल देता है। ऐसा जातक रोगों से मुक्त होता है, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है। इसके साथ ही ऐसा जातक ज्ञानी भी होता है।
सप्तम भाव में केतु का गोचर: इस भाव में केतु के होने से व्यक्ति विपरीत लिंगियों के प्रति आकर्षण महसूस करता है। ऐसे जातकों में आलस्य की अधिकता देखी जाती है। इसके साथ ही गलत कामों में फंसकर ऐसा व्यक्ति अपमानित भी होता है।
अष्टम भाव में केतु का गोचर: अष्टम भाव का केतु इंसान को चरित्रहीन बनाता है, ऐसे लोग लोभी और दूसरों की संपत्ति पर नजर रखते हैं।
नवम भाव में केतु का गोचर: इस भाव में केतु के स्थित होने से व्यक्ति को संतान सुख मिलता है। ऐसे जातक को शास्त्रों का अच्छा ज्ञान होता है।
दशम भाव में केतु का गोचर: ऐसे व्यक्ति के जीवन में कष्ट होते हैं लेकिन इसके साथ ही वह जातक को बुद्धिमान और साहसी बनाता है। ऐसे व्यक्ति विरोधियों पर विजय प्राप्त करते हैं।
एकादश भाव में केतु का गोचर: केतु का एकादश भाव में होना शुभ माना जाता है। ऐसा जातक हर परेशानी को हल करके दिखाता है। इसके साथ ही स्वभाव से भी सरल होता है। शारीरिक रुप से भी ऐसे लोग मजबूत होते हैं।
द्वादश भाव में केतु का गोचर: केतु का द्वादश भव में होना बहुत शुभ नहीं माना जाता है। एसे लोगों को पैरों और आंख की परेशानी हो सकती है। हालांकि ऐसे लोग विदेश यात्रा करते हैं और शत्रुओं पर विजय पाते हैं।
केतु ग्रह के मंत्र
केतु ग्रह के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये केतु ग्रह की शांति के उपाय करने चाहिये। इसके साथ ही नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करके भी आप केतु ग्रह को शांत कर सकते हैं। नीचे केतु ग्रह के मंत्र दिये गये हैं जिनका जाप करके आप केतु के बुरे प्रभावों से बच सकते हैं।
केतु ग्रह का बीज मंत्र- ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः
केतु ग्रह का तांत्रिक मंत्र- ॐ कें केतवे नमः
केतु ग्रह का वैदिक मंत्र- ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। सुमुषद्भिरजायथा:।।