बुध का गोचर
पढ़ें विभिन्न राशियों में बुध के गोचर का ज्योतिषीय प्रभाव और जानें नौकरी, व्यापार, शिक्षा, प्रेम और पारिवारिक जीवन पर होने वाला असर।
बुध ग्रह जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो इसे बुध का गोचर कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष में बुध के गोचर की अवधि सबसे कम होती है। यह ग्रह प्रत्येक राशि में लगभग 14 दिन तक स्थित रहता है। बुध अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र का स्वामी है। हरा रंग और रत्नों में पन्ना बुध को प्रिय है।
वैदिक ज्योतिष में बुध का महत्व
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में बुध को मुख्य रूप से बुद्धि, वाणी, चेतना, व्यापार, सांख्यिकी और त्वचा आदि का कारक होता है। बुध को एक लाभदाता ग्रह माना गया है। हालांकि क्रूर ग्रहों के संपर्क में आने पर कभी-कभी यह अशुभ फल भी देने लगता है। यदि जातक की कुंडली में बुध सूर्य के साथ किसी एक भाव में निकटतम दूरी पर विराजमान हो तो यह सूर्य के संपर्क में आकर बुधादित्य योग का निर्माण करता है जिससे जातक ज्ञानी और बुद्धिमान होता है।
बुध के गोचर का फल
बुध के गोचर के दौरान शिक्षा, गणित और वाणिज्य क्षेत्र से संबंधित नौकरी से संबंधित जातकों को लाभ मिलता है। जन्मकालीन चंद्र राशि से बुध ग्रह द्वितीय, चतुर्थ, षष्टम, अष्टम, दशम और एकादश भाव में शुभ फल देता है। इसके अतिरिक्त शेष भावों में इसका फल सामान्य या नुकसानदेह हो सकता है। आइये विस्तार से जानते हैं कि सभी 12 भावों में बुध के गोचर का फल-
प्रथम भाव: बुध का गोचर जब प्रथम भाव से होता है तो यह विपरीत फल प्रदान करता है। इस अवधि में वाणी में कड़वाहट बढ़ने से विवाद और हानि की संभावना बनी रहती है। यहां स्थित बुध बेकार की यात्राएँ कराता है, जिनसे परेशानी बढ़ती हैं। वहीं अपशब्दों की वजह से किसी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
द्वितीय भाव: धन भाव से गोचर करने पर बुध शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के फल प्रदान करता है। यहां स्थित बुध ग्रह अपमान के साथ-साथ धन लाभ भी कराता है। बुध के प्रभाव से वाणी में मधुरता आती है और बातों में दूसरों को मोह लेने का आकर्षण पैदा होता है। धन के साथ-साथ आभूषण और अच्छे भोजन की प्राप्ति भी होती है।
तृतीय भाव: बुध जब चंद्र राशि से तृतीय भाव में गोचर करता है तो शत्रुओं से भय बना रहता है। सरकार की ओर से भी चिंता बढ़ने की संभावना रहती है। यहां स्थित बुध अनैतिक कार्यों के लिए भी प्रेरित करता है। इस अवधि में मित्रों की प्राप्ति भी होती है।
चतुर्थ भाव: गोचर का बुध ग्रह चतुर्थ भाव में स्थित होकर शुभ फल प्रदान करता है। गोचर की अवधि में धन लाभ होता है। माता का सुख और प्रॉपर्टी से लाभ की प्राप्ति होती है। यहां स्थित बुध शारीरिक बल देता है। पारिवारिक जीवन से सुख और सज्जन लोगों से मैत्री कराता है।
पंचम भाव: गोचर का बुध जब पंचम भाव से संचरण करता है तो मन की बेचैनी बढ़ जाती है। पुत्र व स्त्री पक्ष के साथ विवाद या तनाव की स्थिति बनती है। यहां स्थित बुध के प्रभाव से स्वभाव में अहंकार बढ़ता है और कभी-कभी लोभ की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है।
षष्टम भाव: इस भाव में बुध का गोचर बहुत ही लाभदायक होता है। क्योंकि यहां बुध के स्थित होने से सौभाग्य का उदय होता है। हर क्षेत्र में जातक की उन्नति होती है। शत्रु पराजित और असहाय हो जाते हैं। बुध के प्रभाव हर कार्य में सफलता मिलने लगती है।
सप्तम भाव: इस भाव में बुध के स्थित होने से महिला पक्ष से कलह और विवाद की स्थिति बनती है। शारीरिक कष्ट, सरकार या वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से भय बना रहता है। सप्तम भाव से बुध का गोचर यात्रा और व्यवसाय में हानि भी कराता है।
अष्टम भाव: गोचर का बुध अष्टम भाव में शुभ फल देता है। इसके प्रभाव से अचानक धन लाभ होता है। हर कार्य में सफलता और विजय मिलती है। बुध के प्रभाव से जातक के मन में प्रसन्नता का भाव बना रहता है। सामाजिक स्थिति में सुधार होता है।
नवम भाव: इस भाव में बुध का गोचर सामान्यतः अच्छा नहीं माना जाता है। क्योंकि यहां स्थित बुध भाग्य व धन की हानि कराता है। इस दौरान जातक कई समस्याओं से घिर जाता है, साथ ही बुध हर कार्य में बाधा पहुंचाता है।
दशम भाव: गोचर का बुध जब दशम भाव में स्थित होता है तो बेहद लाभकारी सिद्ध होता है। बुध की कृपा से नौकरी में प्रमोशन और व्यवसाय में लाभ मिलता है। शत्रु की पराजय होती है और हर क्षेत्र में सफलता, समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है।
एकादश भाव: बुध का गोचर जब एकादश भाव में होता है तो यह विशेष रूप से लाभकारी होता है। क्योंकि यहां स्थित बुध आमदनी में वृद्धि और व्यवसाय में लाभ कराता है। स्वास्थ्य लाभ और आरोग्य की प्राप्ति होती है, साथ ही आयु में वृद्धि भी होती है। ग्यारहवें भाव में बुध का गोचर होने से भूमि लाभ, कार्यों में सफलता मिलती है। इसके अलावा संतान पक्ष, भाइयों और मित्रों से सहयोग प्राप्त होता है, साथ ही हरा रंग लाभकारी साबित होता है।
द्वादश भाव: इस भाव में गोचर करने पर बुध कष्टकारी फल देता है। परिणामस्वरूप खर्चों में बढ़ोत्तरी होती है। मानसिक चिंता, शिक्षा में बाधा, शारीरिक कष्ट और शत्रुओं से पराजय का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त स्थान हानि की संभावना भी रहती है। इस भाव में गोचर के दौरान बुध रोग, अपमान और पराजय भी देता है।
विशेष: गोचर में बुध के उच्च, स्व मित्र, शत्रु और नीच राशि आदि में स्थित होने पर उपरोक्त गोचर फल में परिवर्तन संभव है।
बुध ग्रह सामान्यतः लाभदाता ग्रह माना गया है लेकिन बुध का स्वभाव तटस्थ है। यह अन्य शुभ ग्रहों के साथ स्थित होने पर अच्छे फल प्रदान करता है लेकिन क्रूर एवं पापी ग्रहों के संपर्क में आने पर यह अशुभ फल देने लगता है। इस स्थिति में बुध ग्रह की शांति के उपाय अवश्य करने चाहिए। इनमें पन्ना रत्न, विधारा मूल की जड़ और बुध यंत्र की स्थापना करना आदि प्रमुख उपाय हैं।