मंगल का गोचर
पढ़ें विभिन्न राशियों में मंगल के गोचर का ज्योतिषीय प्रभाव और जानें नौकरी, व्यापार, शिक्षा, प्रेम और पारिवारिक जीवन पर होने वाला असर।
मंगल के गोचर से तात्पर्य है मंगल ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। मंगल ग्रह की गोचरीय अवधि करीब डेढ़ माह की होती है यानि यह प्रत्येक राशि में लगभग 45 दिन तक संचरण करता है। इस अवधि में मंगल ग्रह प्रत्येक राशि के अलग-अलग भावों में स्थित होकर मानव जीवन को प्रभावित करता है।
वैदिक ज्योतिष में मंगल का महत्व
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में मंगल को क्रूर और पापी ग्रह माना गया है। यह ऊर्जा, साहस, पराक्रम और रक्त आदि का कारक कहा जाता है। नवग्रहों में मंगल की भूमिका एक सेनापति के रूप में है, इसलिए इसे युद्ध का देवता भी कहा जाता है। मंगल को मेष और वृश्चिक राशि का स्वामित्व प्राप्त है। कर्क एवं सिंह राशि के जातकों के लिए मंगल एक योग-कारक ग्रह है। जन्म कुंडली में मंगल के शुभ प्रभाव से भूमि लाभ, भाई-बहन से सुख, नौकरी और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। वहीं इसके अशुभ प्रभाव से व्यक्ति के अंदर साहस और आत्मविश्वास की कमी होती है, साथ ही दाम्पत्य जीवन में समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। यदि लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में मंगल स्थित होता है तो कुंडली में मांगलिक दोष उत्पन्न हो जाता है, जिसे विवाह और वैवाहिक सुख में बड़ी समस्या का कारण माना जाता है।
मंगल के गोचर का फल
मंगल कुंडली के विभिन्न 12 भावों में रहकर अलग-अलग परिणाम देता है। मंगल ग्रह जातक के भाई-बहनों के साथ उसके रिश्ते को भी प्रदर्शित करता है। आइये जानते हैं कुंडली के हर भाव में मंगल के गोचर का क्या फल होता है-
लग्न भाव- जब मंगल प्रथम भाव यानि लग्न भाव में गोचर करता है तो व्यक्ति के साहस, पराक्रम और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। वह अपने विचारों को साकार करने में सफल होता है। हालांकि लग्न भाव में स्थित मंगल की वजह से क्रोध और अहंकार की बढ़ोत्तरी होती है। इसके परिणामस्वरूप विवाद की स्थितियां बनती हैं।
द्वितीय भाव- मंगल जब जन्मकालीन चंद्रमा से द्वितीय भाव में गोचर करता है तो यह वस्तुओं के प्रति मनुष्य रूचि में वृद्धि करता है। इस दौरान सांसारिक सुख और धन की प्राप्ति के लिए व्यक्ति कड़े प्रयास करता है, साथ ही विभिन्न वस्तुओं की ख़रीददारी पर अधिक धन खर्च करता है। इसके अलावा मंगल भौतिक सुखों की प्राप्ति से व्यक्ति के अंदर अहंकार भी बढ़ाता है।
तृतीय भाव- लग्न भाव से मंगल जब तृतीय भाव में संचरण करता है तो कई कार्यों में ऊर्जा नष्ट होती है। मन में चंचलता बढ़ती है और कई तरह की योजनाएं बनती हैं। इस दौरान विवाद की स्थितियां भी निर्मित होती हैं। वाहन और मशीनों से चोट आदि लगने का भय बना रहता है।
चतुर्थ भाव- मंगल ग्रह जब चतुर्थ भाव से गोचर करता है तो घर-परिवार से जुड़ी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। इस दौरान परिजनों से विवाद होने की स्थिति भी बनती है या फिर पारिवारिक विवाद से उलझन बढ़ती है। किसी बात या विषय को लेकर चिंता बढ़ने लगती है।
पंचम भाव- इस भाव में मंगल का गोचर होने से व्यक्ति का ज्यादातर समय बच्चों के साथ व्यतीत होता है, साथ ही प्रेम संबंध भी मधुर होते हैं। मंगल के प्रभाव से व्यक्तित्व में एक आकर्षण पैदा होता है और हर बात खुलकर बोलने की इच्छा होती है। खेलकूद और मनोरंजन से जुड़े कार्यों में सक्रियता बढ़ती है।
षष्टम भाव- जन्मकालीन चंद्रमा से छठे भाव में मंगल का गोचर लाभकारी होता है। इस दौरान व्यक्ति अपने प्रयासों से अधिक से अधिक आय अर्जित करता है और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है। मंगल के प्रभाव से व्यक्ति की दिनचर्या पहले से अधिक व्यवस्थित होती है। हालांकि नौकरी से जुड़े मामलों में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सप्तम भाव- इस भाव में मंगल का गोचर अच्छा नहीं माना गया है। यहां स्थित मंगल वैवाहिक जीवन में दुःखों का कारण बनता है। जीवनसाथी से अलगाव की स्थिति भी बन सकती है। स्वभाव में क्रोध की अधिकता और वाणी में कड़वाहट बढ़ती है। कानूनी मामलों में फंसने से हानि की संभावना बनती है।
अष्टम भाव- मंगल का गोचर अष्टम भाव में होने से आमतौर पर व्यक्ति को हर कार्य में बाधा का सामना करना पड़ता है। अग्नि व चोरी से धन हानि होने की संभावना रहती है। धन संचय की दृष्टि से भी मंगल अष्टम भाव में शुभ फल नहीं देता है। शरीर में घाव या अन्य शारीरिक पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है।
नवम भाव- इस भाव में मंगल का गोचर कानूनी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। हालांकि इस दौरान मंगल किसी बड़े पद की प्राप्ति भी करवा सकता है। मंगल के प्रभाव से स्वभाव में क्रोध और अहंकार की भावना बढ़ने लगती है। नवम भाव में स्थित मंगल व्यक्ति को उसकी मेहनत के अनुसार परिणाम देता है।
दश्म भाव- मंगल का गोचर दशम भाव में होने से धन लाभ के योग बनते हैं। व्यक्ति को अपने गुणों से प्रसिद्धि और पहचान मिलती है। वाहन और अन्य भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। हालांकि यहां स्थित मंगल संतान पक्ष के लिए अधिक अनुकूल नहीं होता है।
एकादश भाव- ग्यारहवें भाव में गोचर करने पर मंगल व्यक्ति को धैर्य और संयम प्रदान करता है। इस दौरान मित्रों से विवाद की स्थिति बनती है। मंगल के प्रभाव से साहस में वृद्धि होती है और धन लाभ के योग बनते हैं।
द्वादश भाव- बारहवें भाव में मंगल को गोचर अनुकूल परिणाम नहीं देता है। इस दौरान मंगल वैवाहिक जीवन में दुःखों का कारण बनता है। यहां स्थित मंगल ग्रह नेत्र पीड़ा भी दे सकता है। खर्च अधिक होने से देनदारी बढ़ने की संभावना रहती है। किसी वस्तु की चोरी से जुड़ा भय भी बना रहता है।
मंगल ग्रह के अशुभ प्रभावों से बचाव के लिए वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह की शांति के लिए कई उपाय बताये गये हैं। इन उपाय और टोटकों की मदद से मंगल से मिलने वाले बुरे फलों से बचा जा सकता है। इनमें मंगल से जुड़े रत्न, जड़ी, यंत्र और अन्य विशेष उपाय प्रमुख हैं।