शुभ मुहूर्त: महत्व और उपयोगिता
पढ़ें साल के विवाह, मुंडन, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विद्यारंभ, कर्णवेध और नामाकरण के शुभ मुहूर्त। जानें किस तिथि, समय और नक्षत्र में करें मांगलिक कार्यों का शुभारंभ। इसके अलावा पाएँ राहुकाल, दो घटी मुहूर्त, उदय लग्न और आज का शुभ मुहूर्त–
मुहूर्त
मुहूर्त का मतलब है किसी शुभ और मांगलिक कार्य को शुरू करने के लिए एक निश्चित समय व तिथि का निर्धारण करना। अगर हम सरल शब्दों में इसे परिभाषित करें तो, किसी भी कार्य विशेष के लिए पंचांग के माध्यम से निश्चित की गई समयावधि को ‘मुहूर्त’ कहा जाता है। हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में बिना मुहूर्त के किसी भी शुभ कार्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर शुभ कार्य को आरंभ करने का एक निश्चित समय होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय विशेष में ग्रह और नक्षत्र के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, अतः इस समय में किये गये निर्विघ्न रूप से संपन्न और सफल होते हैं। हिंदू धर्म में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, अन्नप्राशन और कर्णवेध संस्कार समेत कई मांगलिक कार्य शुभ मुहूर्त में ही किये जाते हैं।
मुहूर्त का महत्व और उपयोगिता
प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में मुहूर्त को महत्व दिया जाता रहा है। मुहूर्त को लेकर किए गए कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि, ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति की गणना करके ही मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। इसके अलावा हर महत्वपूर्ण और शुभ कार्य के दौरान यज्ञ और हवन करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि यज्ञ व हवन से उठने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हिन्दू समाज में लोग आज भी मांगलिक कार्यों के सफलतापूर्वक संपन्न होने की कामना के लिए शुभ घड़ी का इंतज़ार करते हैं।
मुहूर्त को लेकर अलग-अलग तर्क और धारणाओं के बीच, हमें चाहिए कि हम स्वयं जीवन में इसकी प्रासंगिकता और महत्व का अवलोकन करें। मुहूर्त की आवश्यकता क्यों होती है ? दरअसल मुहूर्त एक विचार है, जो इस धारणा का प्रतीक है कि एक तय समय और तिथि पर शुरू होने वाला कार्य शुभ व मंगलकारी होगा और जीवन में खुशहाली लेकर आएगा। ब्रह्मांड में होने वाली खगोलीय घटनाओं का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि विभिन्न ग्रहों की चाल के फलस्वरूप जीवन में परिवर्तन आते हैं। ये बदलाव हमें अच्छे और बुरे समय का आभास कराते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम वार, तिथि और नक्षत्र आदि की गणना करके कोई कार्य आरंभ करें, जो शुभ फल देने वाला साबित हो।
कैसे जानें शुभ मुहूर्त के बारे में?
मुहूर्त के बारे में जानने का एकमात्र साधन है पंचांग। वैदिक ज्योतिष में पंचांग का बड़ा महत्व होता है। पंचांग के 5 अंग; वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण की गणना के आधार पर मुहूर्त निकाला जाता है। इनमें तिथियों को पांच भागों में बांटा गया है। नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता, और पूर्णा तिथि है। उसी प्रकार पक्ष भी दो भागों में विभक्त है; शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। वहीं नक्षत्र 27 प्रकार के होते हैं। एक दिन में 30 मुहूर्त होते हैं। इनमें सबसे पहले मुहूर्त का नाम रुद्र है जो प्रात:काल 6 बजे से शुरू होता है। इसके बाद क्रमश: हर 48 मिनट के अतंराल पर आहि, मित्र, पितृ, वसु, वराह, विश्वेदवा, विधि आदि होते हैं। इसके अलावा चंद्रमा और सूर्य के निरायण और अक्षांश को 27 भागों में बांटकर योग की गणना की जाती है।
नामकरण संस्कार- संक्रांति के दिन और भद्रा को छोड़कर 1, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13 तिथियों में, जन्मकाल से ग्यारहवें या बारहवें दिन, सोमवार, बुधवार अथवा शुक्रवार को तथा जिस दिन अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, अभिजित, पुष्य, स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा इनमें से किसी नक्षत्र में चंद्रमा हो, तब बच्चे का नामकरण करना चाहिए।
मुण्डन संस्कार- जन्मकाल से अथवा गर्भाधान काल से तीसरे अथवा सातवें वर्ष में, चैत्र को छोड़कर उत्तरायण सूर्य में, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार को ज्येष्ठा, मृगशिरा, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पुनर्वसु, अश्विनी, अभिजित व पुष्य नक्षत्रों में, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तिथियों में बच्चे का मुंडन संस्कार करना चाहिए।
विद्या आरंभ संस्कार- उत्तरायण में (कुंभ का सूर्य छोड़कर) बुध, बृहस्पतिवार, शुक्रवार या रविवार को, 2, 3, 5,6, 10, 11, 12 तिथियों में पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मूल, पूष्य, अनुराधा, आश्लेषा, रेवती, अश्विनी नक्षत्रों में विद्या प्रारंभ करना शुभ होता है।
मकान खरीदने के लिए- बना हुआ मकान खरीदने के लिए मृगशिरा, अश्लेषा, मघा, विशाखा, मूल, पुनर्वसु एवं रेवती नक्षत्र उत्तम हैं।
पैसों के लेन-देन के लिए- मंगलवार, संक्रांति दिन, हस्त नक्षत्र वाले दिन रविवार को ऋण लेने पर ऋण से कभी मुक्ति नहीं मिलती। मंगलवार को ऋण वापस करना अच्छा है। बुधवार को धन नहीं देना चाहिए। कृत्तिका, रोहिणी, आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तरा तीनों, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल नक्षत्रों में, भद्रा, अमावस्या में गया धन, फिर वापस नहीं मिलता बल्कि विवाद बढ़ जाता है।
ध्यान रखें: रोजमर्रा के कार्यों को करने के लिए कोई मुहूर्त नहीं निकाला जाता है, लेकिन विशेष कर्म व कार्यों की सफलता हेतु मुहूर्त निकलवाना चाहिए ताकि शुभ घड़ियों का लाभ मिल सके।
विशेष अवसरों पर शुभ मुहूर्त का महत्व
शुभ मुहूर्त किसी भी मांगलिक कार्य को शुरू करने का वह शुभ समय होता है जिसमें सभी ग्रह और नक्षत्र उत्तम परिणाम देने वाले होते हैं। हमारे जीवन में कई शुभ और मांगलिक अवसर आते हैं। इन अवसरों पर हमारी कोशिश रहती है कि ये अवसर और भी भव्य व बिना किसी रुकावट के शांतिपूर्वक संपन्न हों। ऐसे में हम इन कार्यों की शुरुआत से पूर्व शुभ मुहूर्त के लिए ज्योतिषी की सलाह लेते हैं। लेकिन विवाह ,मुंडन और गृह प्रवेश समेत जैसे खास समारोह पर मुहूर्त का महत्व और भी बढ़ जाता है। विवाह जीवन भर साथ निभाने का एक अहम बंधन है इसलिए इस अवसर को शुभ बनाने के लिए हर परिवार शुभ घड़ी का इंतज़ार करता है ताकि उनके बच्चों के जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहे। इसके अलावा कई अवसर जैसे गृह प्रवेश, प्रॉपर्टी और वाहन खरीदी जैसे कई कामों में भी शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा है।
मुहूर्त से संबंधित सावधानियां
शुभ मुहूर्त में किये गये कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं लेकिन अगर मुहूर्त को लेकर कोई चूक हो जाती है तो परिणाम इसके विपरीत भी आ सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि सही मुहूर्त का चयन किया जाये। आजकल कई टीवी, इंटरनेट और समाचार पत्र में कई तीज, त्यौहार और व्रत से जुड़े मुहूर्त का उल्लेख होता है लेकिन फिर भी भ्रम की स्थिति से बचने के लिए एक बार ज्योतिषी से ज़रूर संपर्क करें। खासकर विवाह, मुंडन और गृह प्रवेश आदि कार्यों के लिए बिना ज्योतिषी की सलाह के आगे नहीं बढ़ें। क्योंकि शुभ मुहूर्त पर शुरू किया गया हर कार्य जीवन में सफलता, सुख-समृद्धि और खुशहाली लेकर आता है।