गुरु का गोचर
पढ़ें विभिन्न राशियों में गुरु के गोचर का ज्योतिषीय प्रभाव और जानें नौकरी, व्यापार, शिक्षा धन, प्रेम, विवाह और पारिवारिक जीवन पर होने वाला असर।
गुरु गोचर हिन्दू वैदिक ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण गोचर माना जाता है। दरअसल शनि, राहु, केतु और बृहस्पति ऐसे ग्रह हैं जिनकी गोचरीय अवधि अन्य ग्रहों की तुलना में अधिक होती है। इसलिए जब-जब ये ग्रह गोचर करते हैं इसका व्यापक प्रभाव मानव जीवन पर देखने को मिलता है। गुरु यानि बृहस्पति की गोचरीय अवधि लगभग 13 महीने की होती है यानि गुरु एक राशि में करीब 1 साल 1 महीने तक संचरण करता है।
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति का महत्व
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को धर्म, ज्ञान, संतान और परोपकार आदि का कारक माना गया है। देवताओं के गुरु होने की वजह से नवग्रहों में बृहस्पति को देव गुरु की उपाधि दी गई है। शुक्र की तरह गुरु की गिनती भी शुभ ग्रहों में होती है हालांकि गुरु और शुक्र आपस में शत्रुता का भाव रखते हैं। क्योंकि शुक्र को दैत्यों का गुरु और बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहा गया है। गुरु के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को बेहतर शिक्षा, संतान, धार्मिक और आध्यात्मिक विचार प्राप्त होते हैं। वहीं कुंडली में बृहस्पति के कमजोर होने से संतान सुख में देरी या कमी देखने को मिलती है। वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को धनु और मीन राशि का स्वामित्व प्राप्त है। सूर्य, चंद्रमा और मंगल ग्रह से गुरु मित्रवत स्वभाव रखते हैं लेकिन बुध और शुक्र से बैर भाव रखते हैं। शनि ग्रह के प्रति गुरु समानता का भाव रखते हैं।
गुरु गोचर का फल
गुरु के गोचर का प्रभाव व्यक्ति की शिक्षा, संतान, धन, धर्म और आध्यात्मिक विचार आदि मामलों पर पड़ता है। यदि गुरु जन्म कुंडली में त्रिकोण भाव (प्रथम, पंचम और नवम भाव) में स्थित होता है तो इसे अत्यंत लाभकारी माना जाता है। आईये जानते हैं गोचर के गुरु का विभिन्न भावों में मिलने वाला फल-
प्रथम भाव में गुरु का गोचर फल- जब बृहस्पति प्रथम भाव से गोचर करता है तो इसे शुभ माना जाता है। क्योंकि इसके प्रभाव से शीघ्र विवाह और संतान सुख की प्रबल संभावना बनती है। यहां स्थित गुरु हर कार्य में सफलता, आमदनी के नये स्त्रोत और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। प्रथम भाव में गुरु का गोचर परिजनों से मतभेद का कारण भी बनता है।
द्वितीय भाव में गुरु का गोचर फल- यहां स्थित बृहस्पति धन लाभ, मान-प्रतिष्ठा और आमदनी में वृद्धि कराता है, हालांकि इस अवधि में खर्च भी बढ़ते हैं। रोजगार की तलाश कर रहे जातकों को नई नौकरी मिलती है। लंबी अवधि से अटके हुए कार्य पूर्ण होते हैं। वाणी और व्यक्तित्व के प्रभाव से समाज में जातक का मान-सम्मान बढ़ता है।
तृतीय भाव में गुरु का गोचर फल- इस भाव में गुरु का गोचर स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल होता है। यात्रा के कई अवसर मिलेंगे और इन यात्राओं से लाभ प्राप्त होगा। नये-नये लोगों से मिलने के मौके मिलेंगे और पुराने मित्रों से सहयोग मिलेगा। अध्ययन कार्यों के प्रति रूचि में वृद्धि होगी।
चतुर्थ भाव में गुरु का गोचर फल- चौथे भाव में गुरु का गोचर कार्यक्षेत्र के लिए उत्तम रहता है। नौकरी और व्यापार में अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण होगा। भाग्य का साथ मिलने से आर्थिक मजबूती बनी रहती है। यहां स्थित गुरु घर या वाहन खरीद की इच्छा को पूर्ण करता है। रोग से छुटकारा और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
पंचम भाव में गुरु का गोचर फल- गोचर का गुरु जब पंचम भाव में स्थित होता है तो संतान, वाहन, स्त्री और आभूषण आदि वस्तुओं की प्राप्ति कराता है। विपरीत लिंग के लोगों के प्रति आकर्षण बढ़ता है। रूके या अटके हुए कार्य पूर्ण होते हैं, अधिकारी वर्ग से सहयोग मिलता है। इसके अलावा व्यापार में भी लाभ की प्राप्ति होती है।
षष्टम भाव में गुरु का गोचर फल- इस भाव में संचरण करते हुए देव गुरु बृहस्पति शुभ फल प्रदान करते हैं। इस समय में विदेश यात्रा का अवसर प्राप्त होता है, साथ ही नौकरी के लिए यह समय विशेष रूप से लाभकारी होता है। आय में वृद्धि के योग बनते हैं लेकिन खर्च भी उसी अनुपात में बढ़ते हैं। स्वास्थ्य संबंधी कुछ विकारों से परेशानी हो सकती है।
सप्तम भाव में गुरु का गोचर फल- सप्तम भाव से विवाह का बोध होता है और गुरु स्वयं विवाह का कारक होता है इसलिए इस भाव में बृहस्पति के गोचर करने से विवाह होने की संभावना बढ़ जाती है। वहीं सामाजिक जीवन में मान-सम्मान की बढ़ोत्तरी होती है और नौकरी में प्रमोशन की संभावना बनती है। जीवनसाथी से सहयोग मिलता है और दाम्पत्य जीवन आनंदमय रहता है।
अष्टम भाव में गुरु का गोचर फल- अष्टम भाव में गुरु का गोचर होने से खर्चों में बढ़ोत्तरी होती है। यह व्यय निवेश के रूप में भी हो सकता है। जमीन-जायदाद या प्रॉपर्टी खरीदने के लिए बैंक या किसी से ऋण लेने की संभावना बनती है।
नवम भाव में गुरु का गोचर फल- गुरु जब नवम भाव में गोचर करता है तो किसी लंबी यात्रा पर जाने की संभावना बनती है। कार्यस्थल पर विशेष अधिकार मिलते हैं और पदोन्नति होती है। संतान सुख की प्राप्ति होती है और आर्थिक स्थिति में मजबूती आती है। दाम्पत्य जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है।
दशम भाव में गुरु का गोचर फल- गोचर का बृहस्पति इस भाव में वैवाहिक जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है। नये भवन की खरीद या पुराने घर के सौंदर्यीकरण का कार्य संपन्न होता है। धन संबंधी बाधाएँ दूर होती हैं और आय में वृद्धि के योग बनते हैं। व्यापारिक कार्य के लिए वित्तीय संस्था से मदद मिलने की संभावना रहती है।
एकादश भाव में गुरु का गोचर फल- गोचर का बृहस्पति जब एकादश भाव में स्थित होता है तो यह अत्यंत शुभ माना जाता है। इस समय में आमदनी के नये जरिये मिलते हैं और धन लाभ की प्राप्ति होती है। कानूनी विवाद या अन्य मामले में सफलता मिलती है। ननिहाल पक्ष से अशुभ समाचार की प्राप्ति और माता जी के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
द्वादश भाव में गुरु का गोचर फल- देव गुरु बृहस्पति जब द्वादश भाव में संचरण करते हैं तो अधिक उत्तम फल प्रदान नहीं करते हैं। इस समय में व्यक्ति तनाव महसूस करता है। धार्मिक कार्यों में कुछ धन खर्च होता है। वाहन की खरीद और बिक्री की संभावना बनी रहती है। पीलिया या लीवर संबंधी बीमारी की संभावना बनती है। पिता से आर्थिक सहायता मिलती है लेकिन माता का स्वास्थ्य परेशानी का कारण बनता है।
बृहस्पति की दया दृष्टि व्यक्ति के लिए मंगलकारी होती है। गुरु के शुभ प्रभाव से जीवन में धन, सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। वहीं इसकी प्रतिकूल स्थिति से विवाह और संतान प्राप्ति में देरी होती है। गुरु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए बृहस्पति की शांति के उपाय करना चाहिए ताकि जीवन में शांति और समृद्धि बनी रहे।