शुक्र का गोचर
जानें सभी 12 राशियों में शुक्र के गोचर का ज्योतिषीय प्रभाव, साथ ही पढ़ें नौकरी, व्यापार, शिक्षा धन, प्रेम, विवाह और पारिवारिक जीवन पर क्या होता है इसका असर?
शुक्र के गोचर की अवधि लगभग 23 दिन की होती है यानि यह एक राशि में 23 दिनों तक स्थित रहता है और फिर दूसरी राशि में गोचर करता है। गोचर का शुक्र विभिन्न भावों में अलग-अलग फल प्रदान करता है और व्यक्ति के भौतिक और वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है।
वैदिक ज्योतिष में शुक्र का महत्व
हिन्दू वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति की तरह शुक्र की गिनती भी शुभ ग्रहों में की जाती है। शुक्र को कला, प्रेम, सौंदर्य, वैवाहिक, वाहन समेत अन्य भौतिक सुखों का कारक माना गया है इसलिए कुंडली में इसकी शुभ स्थिति होने से व्यक्ति को समस्त सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं। वहीं शुक्र के कमजोर होने से वैवाहिक जीवन में तनाव, सांसारिक सुखों में कमी, आर्थिक स्थिति में गिरावट और किडनी रोग समेत कई परेशानियां आती हैं। शुक्र ग्रह को वृषभ और तुला राशि का स्वामित्व प्राप्त है। वहीं मीन राशि में शुक्र उच्च का होता है और कन्या राशि में यह नीच भाव स्थिति होता है। शनि, बुध और राहु-केतु शुक्र के मित्र ग्रह हैं। वहीं बृहस्पति के साथ शुक्र शत्रुता का भाव रखता है।
शुक्र के गोचर का फल
गोचर का शुक्र समस्त 12 भावों में भिन्न-भिन्न फल प्रदान करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम, एकादश और द्वादश भाव में शुक्र गोचर के समय शुभ फल प्रदान करता है लेकिन षष्टम, सप्तम और दशम भाव में इसके फल निराश करने वाले होते हैं। आइये जानते हैं विभिन्न भावों में शुक्र के गोचर का फल-
प्रथम भाव में शुक्र का गोचर: जन्मकालीन राशि से प्रथम भाव में शुक्र का गोचर शुभ फल देने वाला होता है। इस समय में भौतिक और वैवाहिक सुखों की प्राप्ति होती है। मन में प्रेम, सौंदर्य, संगीत और सजने-संवरने की इच्छा अधिक होती है। सामाजिक जीवन में मेल-मिलाप होने से नये संपर्क बनते हैं।
द्वितीय भाव में शुक्र का गोचर: यहां स्थित गोचर का शुक्र धन, संतान, स्त्री के प्रति आकर्षण और पारिवारिक जीवन आदि मामलों के लिए शुभ माना जाता है। इसके अलावा मन में विलासिता पूर्ण जीवन की जीने इच्छा अधिक होती है। प्रेम संबंध और मजबूत होते हैं।
तृतीय भाव में शुक्र का गोचर: इस भाव में शुक्र का गोचर होने से धन, सम्मान, समृद्धि और नये स्थान की प्राप्ति होती है, साथ ही शत्रुओं का नाश होता है। विचारों का आदान-प्रदान और विमर्श करने की इच्छा बढ़ती है। भाई-बहन से मुलाकात होने की संभावना भी बनती है।
चतुर्थ भाव में शुक्र का गोचर: जब गोचर का शुक्र चतुर्थ भाव में स्थित होता है तो मित्रों से लाभ और सहयोग मिलता है। घर-परिवार की ओर झुकाव अधिक रहता है। वहीं निजी जीवन में संतुलन बनाने का प्रयास करना पड़ता है। संबंध खराब होने की स्थिति में सुधार के लिए प्रयास करने पड़ते हैं।
पंचम भाव में शुक्र का गोचर: इस भाव में गोचर का शुक्र भाइयों से लाभ प्राप्त करवाता है। आपके व्यक्तित्व का आकर्षण बढ़ता है और रोमांस की वृद्धि होती है। कला और संगीत के प्रति विशेष रूचि देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त वाणी और स्वभाव में विनम्रता व सौम्यता आती है।
षष्टम भाव में शुक्र का गोचर: यहां स्थित गोचर का शुक्र अच्छे और बुरे दोनों तरह के परिणाम देता है। इस समय में शत्रुओं से चुनौती मिलती है, भाई और मामा पक्ष से सहायता प्राप्त होती है। प्रेम प्रसंग से जुड़े मामलों में प्रियतम की तलाश खत्म होती है। कार्यस्थल पर साथी कर्मचारियों से संपर्क बेहतर होते हैं।
सप्तम भाव में शुक्र का गोचर: जब शुक्र का गोचर सप्तम भाव से होता है तो महिला पक्ष से भय और हानि की आशंका रहती है। यहां स्थित शुक्र कामुकता में वृद्धि करता है। इस समय में व्यक्ति शांति और सुकून भरा जीवन व्यतीत करना अधिक पसंद करता है। इस भाव में शुक्र के प्रभाव से शत्रुओं का नाश होता है।
अष्टम भाव में शुक्र का गोचर: शुक्र ग्रह गोचर के समय जब अष्टम भाव में स्थित होता है तो जातक को घर प्राप्त होता है। मादक पेय पदार्थ और सुंदर स्त्री मिलती है। इस समय में धन लाभ की संभावना बनती है और जीवनसाथी की मदद से भी धन लाभ के योग बनते हैं। इस अवधि में बनने वाले प्रेम संबंध स्थाई होते हैं।
नवम भाव में शुक्र का गोचर: शुक्र ग्रह जब नवम भाव से गोचर करता है तो जातक परोपकारी, हंसमुख और धनवान होता है और उसे सुंदर वस्त्रों की प्राप्ति होती है। इस समय में विदेश यात्रा की इच्छा होती है। रोजमर्रा की जिंदगी खुशी नहीं मिलती है। इस दौरान किसी अन्य धर्म या समुदाय के व्यक्ति से प्रेम संबंध बनने की संभावना रहती है।
दशम भाव में शुक्र का गोचर: इस भाव में शुक्र का गोचर अच्छा नहीं माना गया है। यहां स्थित शुक्र के प्रभाव से भाग्य साथ नहीं देता है और विवाद होते हैं। मानसिक अशांति और शारीरिक क्षमता पर भी असर पड़ता है। खर्च अधिक होने से कर्ज लेने की नौबत आती है। इसके अतिरिक्त शत्रुओं से भी भय बना रहता है।
एकादश भाव में शुक्र का गोचर: इस भाव में शुक्र का गोचर आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है और कर्ज से मुक्ति दिलाता है। यहां स्थित शुक्र के प्रभाव से जीवन में मधुरता आती है तथा व्यक्ति की लोकप्रियता में वृद्धि होती है। जातक का मन वाहन, आभूषण, और स्वादिष्ट व्यंजन जैसी भौतिक सुविधाओं को अर्जित करने में अधिक होता है। इस अवधि में शुक्र की कृपा से घर की प्राप्ति भी होती है।
द्वादश भाव में शुक्र का गोचर: बारहवें भाव में शुक्र के गोचर का मिश्रित फल देखने को मिलता है। इस समय में कुछ दिनों तक आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर रहती है लेकिन इसके बाद अचानक धन हानि और खर्चों में बढ़ोत्तरी होने लगती है। घर में चोरी होने का भय बना रहता है। जीवनसाथी के साथ दाम्पत्य जीवन में आनंदमय रहता है।
हर व्यक्ति के मन में सांसारिक सुखों की इच्छा प्रबल रूप से होती है और वह घर, वाहन, वस्त्र, स्त्री और अन्य भौतिक वस्तुओं की कामना करता है। चूंकि शुक्र को इन सभी वस्तुओं का कारक कहा गया है इसलिए शुक्र की कृपा से इनकी प्राप्ति होती है। यदि कुंडली में शुक्र पीड़ित या कमजोर है तो जीवन में भौतिक सुखों की कमी आती है। ऐसी स्थिति में शुक्र ग्रह की शांति के उपाय अवश्य करना चाहिए, ताकि शुक्र के शुभ प्रभाव से जीवन में खुशहाली आए।