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स्‍वामित्‍व सिद्धान्‍त: ज्योतिष सीखें (भाग-26)

राजयोग की चर्चा करते वक्‍त स्‍वामित्‍व या डिस्‍पोजिटर सिद्धान्‍त की चर्चा की थी। वह एक महत्‍वपूर्ण सित्द्धान्‍त है और अक्‍सर ज्‍योतिषीयों को मैंने गलती करते हुए देखा है। स्‍वामित्‍व सिद्धान्‍त के अनुसार किसी ग्रह की शक्ति बहुत हद तक उसकी स्थित होने वाली राशि के स्‍वामी के ऊपर निर्भर करती है। उदाहरण के तौर पर माना कि कोई ग्रह उच्‍च का है परन्‍तु वह एक ऐसी राशि में स्थित है जिसका स्‍वामी नीच या किसी अन्‍य कारण से कमजोर हो रहा हो। ऐसी स्थिति में उच्‍च ग्रह अपनी क्षमता अनुसार फल नहीं दे पाएगा। यह एक अति महत्‍वपूर्ण सूत्र है और इसे कभी भूलना नहीं चाहिए। ग्रह की ताकत कभी भी बिना डिस्‍पोजिटर देखे नहीं निर्धारित करनी चाहिए। कुण्‍डली की कुछ स्थितियों में डिस्‍पोजिटर सिद्धान्‍त बहुत महत्‍वपूर्ण हो जाता है खासकर कि जब कई ग्रह एक ही राशि में बैठे हों।

एक उदा‍हरण कुण्‍डली से समझाता हूं। इस कुण्‍डली में गुरु, शुक्र और बुध पहले भाव में सिंह राशि में बैठे हैं। ज्‍योतिष का सिद्धान्‍त है कि शुभ ग्रह केन्‍द्र स्‍थानों में बहुत शुभ होते हैं। यह एक प्रकार का शक्तिशाली राजयोग है। लेकिन यहां एक बात ध्‍यान देने वाली है कि ये तीनों ग्रह सिंह राशि में बैठे हैं और डिस्‍पोजिटर सूर्य यानि कि सिंह राशि का स्‍वामी सूर्य बारहवें भाव में बैठा हुआ है जोकि किसी भी ग्रह के लिए अच्छी स्थिति नहीं है। साथ ही यह सूर्य नीच के मंगल के साथ्‍ है और शुत्रु शनि द्वारा देखा जा रहा है इसलिए डिस्‍पोजिटर सूर्य बहुत ही कमजोर है। इस कमजोर सूर्य की वजह से गुरु, शुक्र और बुध का बनाया हुआ राजयोग भंग हो गया।

इसी तरह उच्‍च या नीच के ग्रहों का अध्‍ययन करते समय इस सिद्धान्‍त को कभी भी भूलना नहीं चाहिए। नीचभंग राजयोग का मुख्‍य आधार भी डिस्‍पोजिटर सिद्धान्‍त ही है। जैसे किसी की कुण्‍डली में सूर्य उच्‍च का हो यानि की मेष का हो तो सबसे पहले यह देखना चाहिए कि मंगल कैसा है। अगर मंगल, जोकि सूर्य का डिस्‍पोजिटर है, कमजोर होगा तो सूर्य के उच्‍च होने के फल नहीं मिलेंगे। इस तालिका के माध्‍यम से याद रखें कि कोई ग्रह उच्‍च या नीच हो तो किन ग्रहों का विशेष ध्‍यान रखना चाहिए -

ग्रह अगर उच्‍च हो अगर नीच हो
सूर्य मंगल शुक्र
चंद्र शुक्र मंगल
मंगल शनि चंद्र
बुध -- गुरु
गुरु चंद्र शनि
शुक्र गुरु बुध
शनि शुक्र मंगल

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