विंशोत्तरी दशा – जानें समय व दशा-फल
वैदिक ज्योतिष ग्रंन्थों में अनेकों प्रकार की दशाओं का वर्णन किया गया है, किन्तु इन सब में सबसे सरल, सटीक और लोकप्रिय विंशोत्तरी दशा है। इस दशा का प्रयोग कृ्ष्णमूर्ति पद्धति में भी किया जाता है। यह दशा पद्धति व्यक्ति पर ग्रहों के प्रभाव की समय सीमा के बारे में जानकारी देने की सर्वोत्तम पद्धति है। नीचे अपना विवरण भरें और जानें आपके जीवन में कब-कब किस ग्रह की दशा आएगी और उसका आपके ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा–
जैसा कि विदित है, विंशोत्तरी दशा के द्वारा हमें यह भी पता चल पाता है कि किसी ग्रह का एक व्यक्ति पर किस समय प्रभाव होगा। “महर्षि पराशर” को विंशोत्तरी दशा का पिता माना जाता है। वैसे तो महर्षि ने 42 अलग-अलग दशा सिस्टम के बारे में बताया, लेकिन उन सब में यह सबसे अच्छी दशा प्रणाली में से एक है।
दशा का मतलब होता है “समय की अवधि”, जिसे एक निश्चित ग्रह द्वारा शासित किया जाता है। यह विधि चंद्रमा नक्षत्र पर आधारित है जिसकी वजह से इसकी भविष्यवाणी को सटीक माना जाता है। विंशोत्तरी दशा को "महादशा" के नाम से भी जाना जाता है।
विंशोत्तरी दशा चक्र
यह ज्योतिष में सबसे व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाली दशा है। इस विधि में सभी 9 ग्रहों को एक विशिष्ट समय अवधि आवंटित की जाती है। सभी नौ ग्रहों के महादशा के लिए 120 वर्षों का पूरा चक्र होता है। यह चक्र 9 भागों में बांटा गया है और ज्योतिष में प्रत्येक भाग किसी न किसी ग्रह द्वारा शासित है। इस प्रणाली के अनुसार, मानव की औसत आयु को 120 वर्ष माना जाता है ताकि वह अपने पूरे जीवनकाल में प्रत्येक महादशा से गुजर सके। प्राचीन काल में, औसत आयु इतनी अधिक हो सकती थी, लेकिन अब के समय में यह घटती जा रही है और इसलिए वर्तमान में यह 50-60 साल तक आ गई है।
यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वर्तमान युग में किसी व्यक्ति की औसत आयु 50 प्रतिशत तक होती है। यही कारण है कि एक व्यक्ति सभी ग्रहों के महादशा के प्रभावों का अनुभव करने में असमर्थ है।
वैदिक ज्योतिष में इसके संबंध में एक और तरीका परिभाषित है, जिसे अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा कहा जाता है। महादशाएं लंबे समय तक चलती हैं, वहीं अंतर्दशाएं कुछ महीने से लेकर दो-तीन साल तक की होती हैं, जबकि प्रत्यंतर दशाएं कुछ दिनों से लेकर कुछ महीने तक चलती हैं। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में बैठे ग्रहों की समय-समय पर महादशाएं, अंतर्दशाएं और प्रत्यंतरदशाएं आनी ही होती हैं।
यदि हम अन्तर्दशा को 9 भागों में विभाजित करते हैं, तो हमें प्रत्यंतर दशा की प्राप्ति होती है। दशा प्रणाली के उप विभाजन का क्रम निम्नानुसार है: विंशोत्तरी दशा> अन्तर्दशा> प्रत्यंतर दशा> सूक्ष्म दशा> प्राण दशा>देह दशा ऊपर दी गयी अवधी मुख्य महादशा के उप-हिस्से हैं। आप अपने जीवनकाल में सभी ग्रहों के अन्तर्दशा का अनुभव कर सकते हैं। इन दशा प्रणालियों के माध्यम से जीवन में होने वाली घटनाओं का भी फैसला किया जा सकता है। अपनी महादशा अवधि के दौरान, आप ज्योतिषीय क्रम के आधार पर एक ग्रह द्वारा अपने सभी ग्रहों के प्रभावों का अनुभव करेंगे।
विंशोत्तरी दशा या महादशा की गणना कैसे करें?
महादशा की अवधि निर्धारित करने के लिए वैदिक ज्योतिष में एक विशेष विधि पेश की गई है। इस नियम के मुताबिक, प्रत्येक ग्रह को 3 नक्षत्र आवंटित किए जाते हैं, इसलिए नक्षत्रों की संख्या 27 हो जाती है, जो 9 ग्रहों में वितरित होती है। किसी नक्षत्र में ग्रह की महादशा चंद्रमा की नियुक्ति पर आधारित होती है। जन्म के समय नक्षत्र कुछ ग्रहों की महादशा का निर्धारण करते हैं। किसी नक्षत्र में दशा की अवधि चंद्रमा के स्थान पर निर्भर करती है। यदि जन्म के समय चंद्रमा किसी नक्षत्र में प्रवेश करता है, तो आपको उस विशेष नक्षत्र के शासक ग्रह के महादशा की प्राप्ति होगी। इसी प्रकार, यदि चंद्रमा पहले से ही किसी नक्षत्र से हो कर गुजरता है, तो कुछ नक्षत्रों में चंद्रमा की केवल कुछ डिग्री ही रहती है, आपको उस विशेष नक्षत्र के शासक ग्रह के महादशा की बहुत ही कम अवधि प्राप्त होगी।
विंशोत्तरी चक्र में अपने निश्चित वर्षों के साथ ग्रह
क्रमांक | ग्रह | महादशा वर्ष | नक्षत्र |
1. | सूर्य |
6 वर्ष |
कृ्तिका, उतरा फाल्गुणी, उतरा आषाढा |
2. | चन्द्र | 10 वर्ष | रोहिणी, हस्त, श्रवण |
3. | मंगल | 07 वर्ष | मृ्गशिरा, चित्रा, घनिष्ठा |
4. | राहू | 18 वर्ष | आद्रा, स्वाति, शतभिषा |
5. | गुरु | 16 वर्ष | पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व भाद्रपद |
6. | शनि | 19 वर्ष | पुष्य, अनुराधा, उतरा भाद्रपद |
7. | बुध | 17 वर्ष | आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती |
8. | केतु | 07 वर्ष | मघा, मूला, अश्विनी |
9. | शुक्र | 20 वर्ष | पूर्वा फाल्गुणी, पूर्वा आषाढा, भरणी |
विंशोत्तरी दशा को क्रम अनुसार ऊपर वर्णित किया गया है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति क्रितिका नक्षत्र में पैदा हुआ है तो इसका मतलब है कि उसके जन्म कुंडली में चंद्रमा को क्रितिका नक्षत्र में रखा गया है, जिसकी वजह से उसे सबसे पहले सूर्य ग्रह की महादाशा मिलेगी, इसके बाद चंद्रमा, मंगल, राहु और अन्य होंगे। सूर्य के तुरंत बाद, चंद्रमा की दशा होगी, न कि केतु या शुक्र या फिर किसी अन्य ग्रह की।
विंशोत्तरी दशा और इसके परिणाम
विंशोत्तरी दशा में, ग्रहों की महाद्शा के परिणामों को जानने के लिए एक नियम का वर्णन किया गया है। ग्रहों के शुभ और अशुभ प्रभाव लग्न चिन्ह के माध्यम से निर्धारित किए जा सकते हैं। एक ग्रह एक लग्न के लिए शुभ होता है लेकिन वही ग्रह विभिन्न लग्नों के लिए अशुभ हो जाता है। इसलिए, जो परिणाम हमें प्राप्त होते हैं वो एक लग्न से दूसरे लग्न में भिन्न होते हैं।
उदाहरण के लिए: मेष लग्न के लिए, शनि शुभ ग्रह होता है, वहीं वृषभ लग्न के लिए भी, शनि ग्रह ही शुभ होता है। कन्या लग्न चिन्ह के लिए, बुध शुभ और प्राकृतिक लाभ ग्रह है, इसी तरह कैंसर लग्न के लिए, मंगल लाभकारी ग्रह होता है।
हमें किसी भी लग्न और लाभकारी ग्रह की ताकत के बारे में जानकारी होनी चाहिए है, क्यूंकि यह किसी विशेष ग्रह के पूर्ण और आंशिक परिणाम को तय करता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह कमज़ोर है तो जातक उस ग्रह के महादाशा के दौरान उसके शुभ फल का अनुभव नहीं कर पायेगा। लेकिन यदि यह कुंडली में सही स्थान पर है, तो महादाशा के दौरान यह व्यक्ति को सभी प्रकार के सुख और समृद्धि से भर देता है।
आशा है एस्ट्रोसेज द्वारा विंशोत्तरी दशा के बारे में दी गयी जानकारी आपके लिए लाभदायक रहेगी।