मुंडन मुहूर्त 2018
पढ़ें साल 2018 में बच्चों के मुंडन के मुहूर्त और जानें किस विशेष दिन और समय पर कराएँ अपने बच्चों का मुंडन संस्कार। इसके अलावा जानें मुंडन संस्कार से जुड़ी धार्मिक मान्यताएँ और मुंडन से होने वाले लाभ।
मुंडन मुहूर्त 2018 | ||||
दिनांक | तिथि | वार | टिप्पणी | |
10 फरवरी | दशमी | शनिवार | 14:44 के बाद ज्येष्ठा नक्षत्र में | |
17 फरवरी | द्वितीया | शनिवार | शतभिषा नक्षत्र में | |
20 फरवरी | पंचमी | मंगलवार | रेवती/अश्विनी नक्षत्र में | |
25 फरवरी | दशमी | रविवार | मृगशिरा नक्षत्र में | |
4 मार्च | तृतीया | रविवार | 13:38 से पहले हस्ता नक्षत्र में | |
6 मार्च | पंचमी | मंगलवार | स्वाति नक्षत्र में | |
13 मार्च | एकादशी | मंगलवार | श्रवण नक्षत्र में | |
20 अप्रैल | पंंचमी | शुक्रवार | मृगशिरा नक्षत्र में | |
27 अप्रैल | द्वादशी | शुक्रवार | हस्ता नक्षत्र में | |
10 मई | दशमी | गुरुवार | शतभिषा नक्षत्र में (भद्रा से पहले) | |
22 जून | दशमी | शुक्रवार | हस्ता नक्षत्र में | |
25 जून | त्रयोदशी | सोमवार | अनुराधा नक्षत्र में |
मुंडन संस्कार
हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों का महत्व बताया गया है, इनमें मुंडन भी एक अहम संस्कार है। मान्यता है कि शिशु जब जन्म लेता है तब उसके सिर पर गर्भ के समय से ही कुछ बाल रहते हैं, जिन्हें अशुद्ध माना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य जीवन 84 लाख योनियों को भोगने के बाद प्राप्त होता है, इसलिये पूर्व जन्मों के ऋण और पाप कर्मों से मुक्ति के उद्देश्य से जन्मकालीन केश काटे जाते हैं।
मुंडन से होने वाले लाभ
- जन्मकालीन बाल कटवाने से शरीर की अनावश्यक गर्मी निकल जाती है।
- मस्तिष्क व सिर ठंडा रहता है और बच्चों में दांत निकलते समय होने वाला सिर दर्द व तालु का कांपना बंद हो जाता है।
- सिर पर धूप लगने से कोशिकाओं में रक्त का प्रवाह तेजी से होता है, इससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है और भविष्य में आने वाले केश अच्छे व मजबूत होते हैं।
कब करें बच्चों का मुंडन
बच्चे के जन्म के बाद 3, 5 और 7वें वर्ष में मुंडन संस्कार किया जाता है। अपनी कुल परंपरा के अनुसार इसे प्रथम वर्ष में भी संपन्न किया जा सकता है या फिर मुंडन संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार के साथ ही किया जाता है। बालकों का मुंडन विषम यानि 3, 5 और 7 वर्ष की उम्र में होता है। वहीं बालिकाओं का चौल कर्म (मुंडन) संस्कार सम वर्षों में होता है।
शुभ माह- मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने के बाद उत्तरायण मासों में (14 जनवरी से 15 जुलाई तक) यानि वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, माघ और फाल्गुन मास में बच्चों का मुंडन कराना चाहिए।
शुभ तिथि- कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष में आने वाली द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी। इसके अलावा शुल्क पक्ष में आने वाली त्रयोदशी और पूर्णिमा की तिथि मुंडन संस्कार के लिए शुभ मानी जाती हैं।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार मुंडन के लिए शुभ दिन माने गये हैं। इनमें शुक्ल पक्ष का सोमवार विशेष रूप से शुभ होता है, जबकि कृष्ण पक्ष का सोमवार साधारण माना गया है।
शुभ नक्षत्र- पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा,शतभिषा और ज्येष्ठा नक्षत्रों में मुंडन संस्कार करना शुभ होता है। कुछ विद्वानों के अनुसार जन्म मास व जन्म नक्षत्र और चंद्रमा के चतुर्थ, अष्ठम, द्वादश और शत्रु भाव में स्थित होने पर मुंडन नहीं करना चाहिए। वहीं कुछ विद्वान जन्म नक्षत्र या जन्म राशि को मुंडन के लिए शुभ मानते हैं। ऐसी स्थिति में मुंडन से पूर्व किसी विद्वान ज्योतिषी या पंडित से परामर्श अवश्य लें। ज्येष्ठा नक्षत्र और ज्येष्ठ मास में ज्येष्ठ (बड़े) लड़के का मुंडन नहीं करना चाहिए।
शुभ लग्न- द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, षष्टम, सप्तम, नवम या द्वादश राशियों के लग्न या इनके नवांश में मुंडन शुभ होते हैं।
तारा शुद्धि- मुहूर्त ग्रन्थों के अनुसार मुंडन में तारा का प्रबल होना चंद्रमा से अधिक आवश्यक माना गया है, लेकिन इसका विचार कृष्ण पक्ष में ही किया जाता है। वहीं शुक्ल पक्ष में चंद्र बल का विचार किया जाता है। हालांकि कृष्ण पक्ष में भी अशुभ तारा होने पर यदि चंद्रमा उच्चस्थ और मित्र या किसी शुभ ग्रह के साथ हो, तो मुंडन कार्य किया जा सकता है।
विशेष- मुंडन से जुड़े इन सभी धार्मिक के नियमों के अलावा कुल परंपरा के अनुसार नवरात्रि में सिद्ध शक्तिपीठ या तीर्थ स्थलों पर बिना निर्धारित मुहूर्त के भी मुंडन संस्कार किया जा सकता है।
कैसे करें मुंडन संस्कार
मुंडन संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह संस्कार घर पर या मंदिर में संपन्न कराया जा सकता है। इसके अलावा कुल परंपरा के अनुसार भी मुंडन संस्कार कराये जाते हैं।
- मुंडन संस्कार के समय सबसे पहले शिशु को गोद में लेकर उसका चेहरा हवन की अग्नि के पश्चिम में किया जाता है।
- सबसे पहले कुछ केश पंडित के हाथ से और फिर नाई द्वारा काटे जाते हैं।
- इस अवसर पर भगवान गणेश की पूजा और आयुष होम कराया जाना चाहिए।
- घर, मंदिर या कुल देवता के मंदिर में मुंडन संस्कार संपन्न किया जाना चाहिए।
- कटे हुये केशों को एकत्रित करके विसर्जित कर देना चाहिए।
- मुंडन संस्कार किसी तीर्थस्थल पर इसलिए कराया जाता है ताकि उस स्थल के दिव्य वातावरण का लाभ शिशु को मिले।
मुंडन संस्कार का वैज्ञानिक महत्व
धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी मुंडन संस्कार का बड़ा महत्व है। मेडिकल साइंस के अनुसार दांत निकलने के समय में शिशुओं को कई प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है। इस दौरान बच्चों में कमजोरी, चिड़चिड़ापन, दस्त और उसके बाल झड़ने लगते हैं। मुंडन कराने से बच्चे के शरीर का तापमान सामान्य हो जाने से कई शारीरिक त्था स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बच्चों की रक्षा होती है। मुंडन की और वजह यह भी है कि, जब बच्चा मां के पेट में होता है तो उसके सिर के बालों में बहुत से हानिकारक बैक्टीरिया लग जाते हैं जो जन्म के बाद धोने से भी नहीं निकल पाते हैं इसलिए बच्चे के जन्म के 1 साल के भीतर एक बार मुंडन अवश्य कराना चाहिए। यजुर्वेद में लिखा है कि मुंडन कार्य बल, आयु, आरोग्य और तेज की वृद्धि के लिए किया जाने वाला महत्वपूर्ण संस्कार है।