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लहसुनिया रत्न - Lehsunia Stone

Lehsunia Stone

लहसुनिया रत्न शत्रुता का भाव रखने वाले क्रूर ग्रह केतु से संबंधित होता है जिसके चलते यह बहुत महत्वपूर्ण व अमूल्य होता है। जातक की जन्म कुंडली में केतु की संदिग्ध व हावी स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि उसे लहसुनिया रत्न को धारण कर लेना चाहिए। लहसुनिया एक ऐसा रत्न है जो आध्यात्मिक गुणों के लिए जाना जाता है। यह केतु के दोष पूर्ण प्रभाव से दूर करने में मदद करता है और बढ़ती ठंड के कारण शरीर में होने वाली बीमारियों को भी कम करता है। केतु मुख्यतः वक्रिय स्थिति में रहता है और जब कुंडली में प्रधान होकर स्थित होता है तब वह अप्रत्याशित लाभ व फायदे लेकर आता है। केतु मुख्यतः दादाजी, कुष्ठ रोग, किसी चोट या किसी दुर्घटना, भाग्य व भय के मामलों का संकेत देता है। इतना ही नहीं यह ग्रह यात्रा, बच्चों व जीवन में होने वाली आर्थिक स्थिति को भी दर्शाता है। बात करें यदि रासायनिक समूह की तो लहसुनिया या संस्कृत में वैद्युर्या को क्रिस्सबैरिल परिवार का सदस्य माना जाता है इसलिए इसे क्रिस्बरील कैट्स आई भी कहना गलत नहीं होगा। यह कई रंगों जैसे मटमैला पीला, भूरा, शहद की तरह भूरा, सेब की तरह हरे रंग में उपलब्ध होता है। यह रत्न अपनी चमक के लिए जाना जाता है। लहसुनिया कैबोकाॅन रूप में कटा होता है जिस कारण इसके ऊपर पड़ने वाला प्रकाश एक लंबी रेखा के रूप में दिखाई देता है। इस रत्न के प्रभाव से जातक का मोह-माया व विलास आदि से मन हट जाता है और वह अध्यात्म की ओर झुकने लग जाता है। केतु ग्रह जातक को अध्यात्म, अच्छे-बुरे में अंतर समझने का ज्ञान प्रदान करता है।

लहसुनिया रत्न के फायदे-

लहसुनिया रत्न के कई लाभ हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:

  • लहसुनिया उन जातकों के लिए बेहद उत्तम होता है जो शेयर बाजार या जोखिम भरे निवेश कार्य करते हैं। इस रत्न की कृपा से जोखिम भरे निवेशों का कार्य कर रहे व्यक्ति का भाग्य चमकता है।
  • व्यावसायिक क्षेत्र में यदि आपकी तरक्की लंबे समय से रुकी हुई है, तब भी यह रत्न काफी लाभकारी साबित होता है। इसके प्रभाव से आपको प्रोफेशनल लाइफ में सफलता प्राप्त होती है। फंसा हुआ पैसा व खोई हुई आर्थिक संपदा को भी वापस लाने में लहसुनिया लाभदायी होता है।
  • इस रत्न को धारण करने से आप बुरी नज़र के प्रभाव से भी बचे रहते हैं।
  • केतु जीवन को बहुत संघर्ष पूर्ण बना देता है और कड़ा सबक सिखाता है। लहसुनिया केतु का ही रत्न है जो इस चुनौती भरी स्थिति में भी आपको सुख-सुविधाओं का आनंद प्राप्त करवाता है।
  • अध्यात्म की राह पर चलने वालों के लिए भी लहसुनिया रत्न लाभकारी होता है। इसको धारण करने से सांसारिक मोह छूटता है और व्यक्ति अध्यात्म व धर्म की राह पर चलने लग जाता है।
  • लहसुनिया के प्रभाव से शारीरिक कष्ट भी दूर होते हैं। अवसाद, लकवा व कैंसर जैसी बीमारियों में भी यह रत्न लाभदायक होता है।
  • लहसुनिया मन को शांति प्रदान करता है और इसके प्रभाव से स्मरण शक्ति तेज होती है और आप तनाव से दूर रहते हैं।

लहसुनिया रत्न के नुकसान

कुछ रत्न जो व्यक्ति की जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के साथ यदि मेल नहीं खाते हैं तो उनका बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है इसलिए किसी भी रत्न को धारण करने से पहले किसी योग्य ज्योतिषी से सलाह ज़रूर लें, तभी खुशहाली व समृद्धि प्राप्त होगी। लहसुनिया से होने वाले कुछ बुरे प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • दिल या मस्तिष्क से जुड़े रोग हो सकते हैं।
  • चोट आदि लगने का भी डर रहता है, जिसके चलते खून ज़्यादा बह सकता है।
  • जननांगों में समस्याएं हो सकती हैं।
  • पसीना बहुत ज़्यादा निकलने लग जाता है। हर वक्त थकान व मितली जैसा महसूस होता है।
  • स्वभाव में उग्रता आती है व बेफिज़ूल के झगड़े होने लग जाते हैं।

कितने रत्ती का रत्न धारण करें?

रत्न के आकार और वजन का चुनाव करते वक्त कई पहलुओं को देखा जाता है। लहसुनिया रत्न को केतु की दशा के वक्त पहनने का सुझाव दिया जाता है। इस रत्न को आजीवन धारण नहीं किया जाता है। बस जब केतु कुंडली में गलत स्थान पर स्थित होता है, केवल तब ही इस रत्न को पहनते हैं। इस रत्न का वजन निर्धारित करने के लिए सामान्यतः ज्योतिषी धारण करने वाले का शारीरिक वजन देखते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति 60 किलो का है तो वो लगभग 6 कैरेट या रत्ती का रत्न धारण कर सकता है। या फिर ज्योतिषी रत्न का वजन पता करने के लिए केतु की दशा का प्रभाव भी देखते हैं। वैसे आमतौर पर 2.25 कैरेट से लेकर 10 कैरेट तक का रत्न धारण किया जा सकता है।

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लहसुनिया का हर राशि पर प्रभाव

लहसुनिया हर राशि पर अलग-अलग प्रकार से कार्य करता है। आइए देखें कि इस रत्न का विभिन्न राशियों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

जानें अपनी राशि के अनुसार अपना भाग्य रत्न: रत्न सुझाव

( सूचना: हम सभी पाठकों को यह सुझाव देते हैं कि कोई भी रत्न पहनने से पहले एक बार किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें)

मेष- यदि इस राशि के जातकों की कुंडली में केतु पांचवें, छठे, नौवें या बारहवें भाव में है तो उन लोगों को लहसुनिया धारण कर लेना चाहिए। यह पत्थर विशेष रूप से तब पहनना चाहिए, जब केतु जन्म कुंडली में एक निर्णायक स्थिति में हो। रत्न की उपयुक्तता का परीक्षण करने के लिए उसका कम से कम तीन दिन तक परीक्षण ज़रूर करें।

वृषभ- यदि केतु आपकी कुंडली में नवम या एकादश भाव में स्थित हो तो इस राशि के जातकों को लहसुनिया ज़रूर पहनना चाहिए। आपको भी यह रत्न तीन दिन पहन कर ज़रूर देखना चाहिए।

मिथुन- इस राशि के जातकों को लहसुनिया तब ही पहनना चाहिए जबकि केतु नवम, दशम या एकादश भाव में स्थित हो। आपको भी इस रत्न को पहनने के लिए तीन दिन का प्रशिक्षण ज़रूर करना चाहिए।

कर्क- कर्क राशि के जातकों की कुंडली में यदि केतु छठे, नौवें या ग्यारहवें भाव में स्थित है तो आप भी इस रत्न को धारण कर सकते हैं। शुरू में इस रत्न को तीन दिन पहनकर ज़रूर देखें।

सिंह- यदि आपकी कुंडली में केतु अष्टम, नवम व एकादश भाव या फिर किसी संदिग्ध स्थिति में है तो आपको लहसुनिया रत्न धारण कर लेना चाहिए। रत्न का असर जानने के लिए तीन दिन का ट्रायल ज़रूर करें और तभी जारी रखें जबकि प्रभाव शुभ हो।

कन्या- कन्या राशि के जातक जिनकी जन्म कुंडली में केतु चतुर्थ, नवम व तृतीय भाव में स्थित है, या फिर केतु हावी है तो वो लोग लहसुनिया रत्न धारण कर सकते हैं। लेकिन रत्न को पूरी तरह से अपनाने से पहले तीन दिन पहन कर उसके प्रभाव पर नज़र डालें।

तुला- जब केतु कुंडली में द्वितीय, तृतीय या फिर एकादश भाव में हो या हावी हो, ऐसी स्थिति में इस राशि के जातकों को लहसुनिया धारण कर लेना चाहिए। तीन दिन का ट्रायल अवश्य करें।

वृश्चिक- वृश्चिक राशि के जातक केवल तब ही लहसुनिया रत्न धारण कर सकते हैं, जब आपकी कुंडली में केतु द्वितीय, दशम या एकादश भाव में हो या फिर हावी हो। शुरू में तीन दिन इस रत्न का परीक्षण ज़रूरी है।

धनु- केतु के संदिग्ध या द्वितीय, चतुर्थ, नवम या द्वादश भाव में स्थित होने पर धनु राशि के जातक इस रत्न को धारण कर सकते हैं। आपके लिए भी तीन दिन का ट्रायल आवश्यक है।

मकर- मकर राशि के जातकों की कुंडली में यदि केतु दूसरे, चौथे, नौवें या बारहवें भाव में है या फिर किसी प्रभावित स्थान पर है तो आपको लहसुनिया रत्न धारण कर लेना चाहिए। तीन दिन तक रत्न के प्रभाव को ज़रूर देखना चाहिए।

कुंभ- आपकी कुंडली में यदि केतु द्वितीय, दशम या एकादश भाव में स्थित हो या फिर मज़बूत हो तो आपको लहसुनिया धारण कर लेना चाहिए। रत्न धारण करने से पहले तीन दिन का परीक्षण ज़रूर कर लें।

मीन-आप इस रत्न को केवल तब ही धारण कर सकते हैं जबकि आपकी कुंडली में केतु द्वितीय, नवम या दशम भाव में स्थित हो या फिर कुंडली में हावी हो। शुरू में तीन दिन तक ट्रायल करें, यदि उसका प्रभाव अच्छा दिखें, तब ही केवल उसे पहने रखें।

लहसुनिया की तकनीकी संरचना

यह बेरिलियम का एल्‍युमिनेट है और इसका रासायनिक सूत्र Al2BeO4 है। अपवर्तक सूची में इसकी सीमा 1.744 से 1.755 तक रहती है और मोह्स स्कैल पर इसकी कठोरता 8.5 होती है जिस कारण यह प्राकृतिक रत्नों की कठोरता के मामले में तीसरे स्थान पर आता है। लहसुनिया रत्न का घनत्व 3.70 से 3.72 तक होता है। इस रत्न में मौजूद चयनात्मक प्रभाव इसकी सुंदरता और उपयोग को परिभाषित करता है। लहसुनिया रत्न में हमेशा एक चमक सी नज़र आती है जिस कारण यह हरदम चमकता है और स्मूथ होता है। लहसुनिया के यूं तो कई प्रकार होते हैं लेकिन क्रिस्बरील लहसुनिया को अपने मज़बूत, विशिष्ट और ज्वलंत प्रभाव के कारण सबसे अच्छा माना जाता है। इसके झिलमिलाते हुए प्रभाव के कारण ही इस रत्न को कैट आई कहा जाता है।

लहसुनिया रत्न धारण करने की विधि

वैदिक ज्योतिष में लहसुनिया का संबंध केतु से माना गया है। केतु की दशा जातक के लिए कई बार दर्दनाक भी हो जाती है। लहसुनिया केतु के द्वारा दिए गए कष्टों को कम या संतुलित करने के लिए जाना जाता है। इस रत्न के प्रभाव से आध्यात्मिक उत्थान भी होता है और मन से चिंता व कष्ट दूर हो जाते हैं। हर रत्न भिन्न-भिन्न ग्रहों से संबंधित होते हैं इसलिए उन्हें धारण करने के अलग-अलग तरीके होते हैं। यह ज़रूरी है कि रत्न का पूरी तरह से लाभ प्राप्त करने के लिए आप उसे सही तरह से धारण करें। लहसुनिया को धारण करने का तरीका कुछ इस प्रकार हैः

  1. यह रत्न राहु व केतु से संबंधित होता है इसलिए इसको किसी अनुभवी ज्योतिषी के सलाह के मुताबिक सही मुहूर्त और विशेष परिस्थितियों में ही पहनना चाहिए।
  2. इस रत्न का न्यूनतम वजन कम से कम 7 कैरेट होना चाहिए जो लगभग 1400 एमजी का होना चाहिए।
  3. आप जिस हाथ से कार्य करते हैं, उसी हाथ की रिंग फिंगर या फिर मध्यिका में इस रत्न को धारण करना चाहिए।
  4. लहसुनिया रत्न को धारण करने का मकसद यह है कि ये पहनने वाले की त्वचा से टच करें।
  5. यह ज़रूरी है कि लहसुनिया को धारण करने से पहले उसे गंगाजल या गाय के दूध में 10 मिनट के लिए डुबोएं।
  6. लहसुनिया को आमतौर पर शुक्ल पक्ष के दौरान पड़ने वाले मंगलवार को सुबह के समय पहनना चाहिए।
  7. मशहूर व प्रसिद्ध ज्योतिषियों के अनुसार अंगूठी धारण करते वक्त 'ॐ केतवे नमः' मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
  8. इस रत्न को साफ करने का सबसे अच्छा तरीका है कि साबुन के पानी में इसे डुबोकर किसी सॉफ्ट ब्रश से साफ कर लें।

असली लहसुनिया रत्न की पहचान कैसे करें?

आम आदमी को यदि लहसुनिया की पहचान करनी है तो वो इन दो तरीकों को आज़मा सकता है। यदि लहसुनिया को अंधेरे कमरे में रखने पर बिल्कुल वैसे ही चमक आती है, जैसे कि बिल्ली की आंखें अंधेरे में चमकती है तो रत्न सही है। या फिर लहसुनिया रत्न पर कपड़ा रगड़ने से उसकी चमक पहले से ज़्यादा बढ़ जाए तो भी समझ जाए कि रत्न असली है। वैसे इसके अलावा कुछ और भी तरीके हैं जो हमें असली लहसुनिया रत्न ख़रीदने में मदद करती हैंः

  1. रंग- लहसुनिया रत्न में चयनात्मक प्रभाव इसकी गुणवत्ता और वास्तविकता का सूचक होता है। यह चयनात्मक प्रभाव रोशनी की एक पतली सी रेखा है जो रत्न के अंदर दिखती रहती है। यह रेखा हमें लहसुनिया के अंदर बहुत ही महीन समानांतर सुइयों से प्रशोषित होने वाले प्रकाश के कारण दिखती है। लहसुनिया विभिन्न रंगों में पाया जाता है- हरा, हल्का हरा, पीला तथा भूरा।
  2. कट- यह रत्न इस तरह से कटा हुआ होना चाहिए कि इसका चयनात्मक प्रभाव ज्यों का त्यों बरकरार रहे। यदि लहसुनिया को कैबोकाॅन के रूप में काटा जाए तो इसके ऊपर पड़ने वाला प्रकाश एक लंबी रेखा के रूप में दिखाई देता है। यह रेखा कैबोकाॅन की ऊपरी सतह पर दिखाई देती है। इसी रेखा के कारण इसे कैट्स आई कहते हैं जो बिल्ली की आंख की तरह दिखती है। यह रेखा (आंख) हमें लहसुनिया के अंदर बहुत ही महीन समानांतर सुइयों से प्रशोषित होने वाले प्रकाश के कारण दिखती है।
  3. कैरेट- लहसुनिया कम से कम 0.10 कैरेट से लेकर 3.00 कैरेट तक का होना चाहिए। हालांकि इससे ज़्यादा कैरेट के भी रत्न को धारण किया जा सकता है। लहसुनिया 150 कैरेट का भी आता है लेकिन यह बहुत मुश्किल से मिलता है और महंगा भी होता है।
  4. स्पष्टता- लहसुनिया रत्न की झलक दूधिया या बिल्कुल स्पष्ट व साफ होना मुश्किल होती है। ऐसे रत्न बहुत दुर्लभ होते हैं।

वैसे हर किसी को सावधानी बरतते हुए हमेशा रत्न किसी अधिकृत और विश्वसनीय जगह से ख़रीदने चाहिए। रत्न वहीं से ख़रीदें जहां उसकी प्रामाणिकता का सर्टिफ़िकेट दिया जाए। यदि कोई संदेह है तो रत्न की पहचान करवाने के लिए आप परीक्षण प्रयोगशाला से परामर्श ले सकते हैं।

प्राकृतिक रत्नों के बारे में कैसे जानें?

बाजार में नकली उत्पादों की वृद्धि के कारण, खरीदार अब रत्न ख़रीदने के दौरान अधिक सावधान और सतर्क हो गए हैं। उपभोक्ताओं को बेहद सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि महंगी कीमत हमेशा प्रामाणिकता की गारंटी नहीं देती। गुणवत्ता और कीमत के संदर्भ में पत्थरों का एक व्यापक बाज़ार है। आमतौर पर एक महंगे रत्न को अधिक प्रभावशाली माना जाता है, लेकिन वो लैब द्वारा प्रमाणित ज़रूर होना चाहिए। तभी आप असली व नकली रत्न के बीच अंतर कर सकेंगे। इसके अलावा, उपभोक्ता रत्न खरीदने से पहले उसकी गुणवत्ता का पता भी लग सकता है। व्यापक रूप से उपलब्ध नकली उत्पादों से सावधान रहें।

एस्ट्रोसेज द्वारा प्रमाणित रत्न-

रत्न की क्वालिटी जानने का सबसे उत्तम तरीका उसका लैब से प्रमाणित होना है। ज़्यादातर विक्रेता रत्न की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता के लिए सर्टिफिकेट भी प्रदान करते हैं। एस्ट्रोसेज अपने सभी रत्नों के लिए प्रमाण पत्र प्रदान करता है ताकि इसकी वैधता और खरा होने की पुष्टि हो सके। यह प्रमाण पत्र आईएसओ 9001-2008 द्वारा प्रमाणित है, जो इसके रंग, वजन, आकार से संबंधित सभी जानकारी प्रदान करता है। एस्ट्रोसेज से रत्न ख़रीदने में जोखिम बहुत कम रहता है।

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