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सूर्य का गोचर

पढ़ें विभिन्न राशियों में सूर्य के गोचर का ज्योतिषीय प्रभाव और जानें नौकरी, व्यापार, शिक्षा, प्रेम और पारिवारिक जीवन पर होने वाला असर–

सूर्य गोचर सूर्य के गोचर का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। जब सूर्य राशि परिवर्तन करता है तो इसे सूर्य संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य एक राशि में एक माह की अवधि तक गोचर करता है। इस दौरान वह विभिन्न राशि के अलग-अलग भावों में स्थित होकर उन्हें प्रभावित करता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है। इसके समीप आने पर किसी भी ग्रह का प्रभाव शून्य हो जाता है, इसलिए कई बार ऐसा होता है कि सू्र्य के प्रभाव में आने के कारण संबंधित ग्रह अपने चरित्र के अनुसार परिणाम नही दे पाते हैं ऐसे ग्रहों को अस्त ग्रह कहा जाता है।

वैदिक ज्योतिष में सूर्य का महत्व

हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य के बिना पृथ्वी पर मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। सूर्य के प्रकाश से समस्त जीवों को जीवन मिलता है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को नवग्रहों के राजा की उपाधि दी गई है। कुंडली में सूर्य आत्मा, पिता, पूर्वज, उच्च पद, सरकारी नौकरी और मान-सम्मान आदि का कारक कहा गया है। जन्म कुंडली में सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को मान-सम्मान, सरकारी नौकरी और राजनीतिक जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है। वहीं सूर्य के अशुभ प्रभाव से कुंडली में पितृ दोष, नौकरी में असफलता, मान-सम्मान की कमी और नेत्र पीड़ा होती है।

सूर्य के गोचर का फल

सूर्य के गोचर के दौरान कैसा फल प्राप्त होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य आपकी कुंडली या राशि से किस भाव में संचरण कर रहा है। क्योंकि सभी 12 भावों में सूर्य के गोचर का फल भिन्न-भिन्न होता है। जन्मकुंडली में चंद्रमा जिस भाव में स्थित होता है उसे लग्न भाव मानकर गोचर के ग्रहों का फलकथन कहा जाता है। आईये जानते हैं विभिन्न भावों में सूर्य के गोचर का फल-

लग्न भाव- सूर्य का गोचर लग्न भाव में होने से स्वास्थ्य समस्या और मानसिक तनाव की स्थिति बनी रहती है। इस समय में ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग, पेट दर्द और नेत्र विकार से जुड़ी समस्याएं परेशान कर सकती है।

द्वितीय भाव- जब गोचर का सूर्य लग्न भाव से दूसरे भाव में गोचर करता है, तो मित्र और रिश्तेदारों से विवाद होने की संभावना रहती है। प्रत्येक कार्य में विलंब और मान-सम्मान की कमी होती है। व्यापार और धन में हानि का भय बना रहता है।

तृतीय भाव- सूर्य जब लग्न राशि से तीसरे भाव में गोचर करता है तो शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस समय में उच्च अधिकारियों व सज्जन लोगों से मेल-मिलाप की संभावना बनती है। संतान और मित्रों से मदद व सम्मान मिलता है। विरोधियों पर विजय मिलती है और सामाजिक जीवन में मान-सम्मान व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। सरकारी या गैर सरकारी विभाग में पद लाभ के साथ-साथ धन लाभ के योग भी बनते हैं।

चतुर्थ भाव- जन्मकालीन चंद्रमा से जब सूर्य का गोचर चतुर्थ भाव में होता है तो यह अशुभल फल प्रदान करता है। इस समय में मानसिक व शारीरिक पीड़ा बढ़ जाती है। पारिवारिक जीवन में सुखों की कमी और विवाद की स्थितियां बनती है। जमीन-जायदाद संबंधी परेशानियां उत्पन्न हो सकती है। इस दौरान अनावश्यक यात्राएँ भी करनी पड़ती है और असुरक्षा का भय बना रहता है।

पंचम भाव- लग्न भाव से सूर्य का गोचर जब पंचम भाव में होता है। इसके प्रभाव से मानसिक भ्रम की स्थिति पैदा होती है। स्वयं और संतान को स्वास्थ्य संबंधी पीड़ा हो सकती है। कार्य स्थल पर वरिष्ठ अधिकारियों या सरकार से विवाद की स्थिति की संभावना बनती है।

षष्टम भाव- जन्मकालीन चंद्रमा से षष्टम भाव में सूर्य का गोचर लाभदायक माना गया है। यहां स्थित सूर्य सभी कार्यों को पूरा करता है। मान-सम्मान में वृद्धि और सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। अन्न और वस्त्र आदि का लाभ मिलता है। शरीर स्वस्थ और मानसिक शांति बनी रहती है।

सप्तम भाव- लग्न भाव से सूर्य का गोचर जब सप्तम भाव में होता है, तो वैवाहिक जीवन में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस दौरान पति-पत्नी के बीच मनमुटाव की संभावना बनती है। ज्यादातर कार्यों में असफलता और निराशा हाथ लगती है। नौकरी और बिजनेस में परेशानी उत्पन्न होती है। कष्टकारी यात्राएँ और धन हानि की संभावना रहती है।

अष्टम भाव- इस भाव में सूर्य का गोचर शुभ नहीं माना गया है। यहां स्थित सूर्य गिरफ्तारी, कानूनी केस और जुर्माने की संभावना बनाता है। अपमान और विरोधियों से पराजय का डर बना रहता है। अष्टम भाव में स्थित सूर्य शारीरिक पीड़ा भी देता है।

नवम भाव- जब लग्न भाव से सूर्य का गोचर नवम भाव में होता है, तो मित्रों और संतानों से मतभेद की स्थिति बनती है। इसके अलावा राज्य या सरकार की ओर से मिलने वाली किसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। सबसे बड़ी बात है कि इस समय में भाग्य का साथ नहीं मिलता है।

दशम भाव- इस भाव में सूर्य का गोचर शुभ माना गया है। क्योंकि यहां स्थित सूर्य के प्रभाव से सभी कार्य आसानी से पूरे हो जाते हैं। घर का सुख मिलता है और कार्यस्थल पर वरिष्ठ अधिकारी प्रसन्न होते हैं। नौकरी में पदोन्नति के योग बनते हैं और सरकार की ओर से सम्मान और धन लाभ की प्राप्ति होती है।

एकादश भाव- लग्न भाव से जब सूर्य का गोचर एकादश भाव में होता है तो इसे शुभ माना जाता है। चूंकि एकादश भाव एक लाभ का भाव होता है इसलिए यहां स्थित सूर्य के प्रभाव से आमदनी में बढ़ोत्तरी और धन लाभ होता है। नौकरी और व्यवसाय में लाभ के साथ-साथ उत्तम भोजन की प्राप्ति होती है। इस दौरान मित्रों से भी सहयोग मिलता है।

द्वादश भाव- इस भाव में सूर्य का गोचर अच्छा नहीं माना गया है। क्योंकि यहां स्थित सूर्य के प्रभाव से शारीरिक कष्ट और धन हानि की संभावना रहती है। मानसिक चिंता बढ़ती है और दुर्घटनाओं का भय बना रहता है।

कुंडली में सूर्य की स्थिति या गोचर के फलस्वरूप मिलने वाले बुरे फलों से बचने के लिए सूर्य ग्रह की शांति और उससे संबंधित उपाय अवश्य करना चाहिए, ताकि जीवन में शांति और खुशहाली बनी रहे।

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