नक्षत्र: ज्योतिष सीखें (भाग-18)
ज्योतिष में सूक्ष्म फलकथन के लिए राशिचक्र के सिर्फ 12 विभाग काफी नहीं होते। सटीक फलकथन के लिए कई और विभागों का जानना जरूरी है और उनमें से सबसे महत्वपूर्ण है नक्षत्र। अगर राशिचक्र को सत्ताईस बराबर भागों में बांटा जाए तो हर भाग एक नक्षत्र कहलाएगा। अंग्रेजी में नक्षत्र को कान्सटैलेशन (constellation) या स्टार (star) भी कहा जाता है। चूंकि गणितीय दृष्टिकोण से हम राशिचक्र को 360 अंश का मानते हैं अत: हर एक नक्षत्र 360 / 27 = 13 अंश 20 कला का या लगभग 13,33 अंशों का होता है। हर राशि कि तरह ही हर नक्षत्र का भी एक नाम होता है। पहले नक्षत्र का नाम अश्विनी, दूसरे का भरणी और आखिरी नक्षत्र का नाम रेवती है। हर नक्षत्र का स्वामी ग्रह निश्चित है और वह इस क्रम में होता है - केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि और बुध। याद रखने में आसानी के लिए यह सूत्र याद रखें - केशुआचभौरराजीश यानि केतु, शुक्र, आदित्य (सूर्य), चंद्र, भौम (मंगल), राहु, जीव (गुरु), शनि, बुध । हर नवें नक्षत्र के बाद नक्षत्र स्वामी रिपीट होता है यानि कि जो पहले नक्षत्र का स्वामी ग्रह है वही दसवें नक्षत्र का स्वामी हो और वही 19वें नक्षत्र का स्वामी होगा।
नक्षत्र विभाजन ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण है। ज्योतिष में दशा की गणना भी नक्षत्रों के आधार पर की जाती है। दशा से किसी भी घटना का समय निर्घारण होता है, उसके बारे में बाद में जानेंगे। संक्षेप में ग्रह जिस नक्षत्र में बैठा होता है उस नक्षत्र से कारकत्व ले लेता है। ज्योतिषी लोग ग्रहों की राशि तो अक्सर देखते हैं क्योंकि जन्म कुण्डली से ही दिख जाता हैं परन्तु नक्षत्र को भूल जाते हैं। ग्रह अपनी दशा में सिर्फ उन्ही भावों का फल नहीं देता जिनका व स्वामी है और जिस भाव में वह बैठा है। परन्तु उन भाव का भी फल देता है जिनका उस ग्रह का नक्षत्र स्वामी मालिक है और जहां उस ग्रह का नक्षत्र स्वामी बैठा है। इसलिए जब भी हम दशा देखें, ग्रह के नक्षत्र स्वामी को न भूलें।
इस एपीसोड में इतना ही। नमस्कार।