गुण मिलान विवाह के लिए
ज्योतिष विज्ञान में एक सफल और खुशहाल विवाह के लिए लड़के और लड़की के गुणों और कुंडली का मिलान किया जाता है, इस प्रक्रिया को हम कुंडली मिलान कहते हैं। इस सिद्धान्त को अष्टकूट गुण मिलान के नाम से भी जाना जाता है। एस्ट्रोसेज अपने उपयोक्ताओं के लिए गुण मिलान की सुविधा उपलब्ध करा रहा है। नीचे दिए गए फॉर्म में आप अपने और अपने भावी जीवन साथी के जन्म सम्बन्धी विवरण को भरकर कुंडली का मिलान कर सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं–
क्या है गुण मिलान?
हिन्दू धर्म में शादी को एक पवित्र बंधन माना गया है, जिसमें एक लड़का और एक लड़की सात फेरे लेते वक़्त ये कसम खाते हैं कि दोनों एक दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। हमने हमारे बड़े-बुज़ुर्ग से भी अक्सर यह सुना है कि शादी गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं और यह सही भी है। शादी को हमारे यहाँ सात जन्मों का बंधन मानते हैं। इसीलिए विवाह से पूर्व ऐसी कई सारी चीज़ें हैं जिनपर हमें विशेष ध्यान देने की आवश्कयता है। लेकिन इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है वो हैं कुंडली मिलान जिसे कुछ लोग अष्टकूट गुण मिलान भी कहते हैं।
कुण्डली मिलान या गुण मिलान में वर और वधु की कुंडली में मौजूद ग्रह, नक्षत्रों आदि की स्थिति की गणना की जाती है, इसके साथ ही दोनों के गुण आदि का भी मिलान किया जाता है और पूर्णतः परिक्षण करने के बाद ही निष्कर्ष निकाला जाता है कि वर-वधु एक दूसरे के लिए योग्य हैं या नहीं।
गुण मिलान का महत्व
आज विज्ञान काफी तरक्की कर चूका है। अगर देखा जाये तो विज्ञान ने भविष्य के बारे में जानने की तकनीक को भी तैयार कर लिया है और इसका जीता जागता उदाहरण है कम्प्यूटर की मदद से कुंडली का निर्माण करना। कम्प्यूटर में आपके द्वारा अपने जन्म की पूरी जानकारी भरते ही आपके सामने आपकी जन्म कुंडली बनकर आ जाती है। वैसे लोग जो कुंडली मिलान के बाद ही विवाह में विश्वास करते हैं वे अपनी और भावी जीवनसाथी की जानकारियों की मदद से अपनी कुंडली को मिलाकर देख सकते हैं कि उनका अपने होने वाले पति/पत्नी के साथ कैसा तालमेल रहेगा। मतलब साफ़ शब्दों में कहा जाये तो कुंडली की सहायता से वैवाहिक जीवन के रहस्य से पर्दा उठाया जा सकता है।
आज के इस मॉडर्न समय में अधिकांश लोग लव मैरिज करते हैं, ऐसे में वे कुण्डली मिलान जैसी चीज़ों पर ज्यादा विश्वास नहीं करते हैं। लेकिन शास्त्रों के अनुसार एक सफल शादी के लिए कुंडली मिलान होना बेहद जरूरी होता है। इससे हमें इस बात कि जानकारी होती है कि होने वाले वर-वधु के कितने गुण मिल रहे हैं। न केवल गुण बल्कि कुंडली मिलान की मदद से हमें दोष आदि का भी पता चलता है।
शादी के बाद वर-वधू का जीवन हँसी-ख़ुशी से गुज़रे, इसके लिए विवाह के पहले लड़के और लड़की की कुंडली का मिलान किया जाता है। किसी अनुभवी ज्योतिषी द्वारा भावी दंपत्ति की कुंडलियों की मदद से दोनों के गुण और दोष आदि मिलाए जाते हैं। साथ ही दोनों की जन्म कुंडली में ग्रहों, नक्षत्रों की स्थिति आदि को देखते हुए इस बात का सटिक अंदाजा लगाया जाता है कि इनका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा?
वैसे तो कुंडली मिलान का बहुत महत्व है लेकिन एक महत्वपूर्ण चीज़ और है जिसपर हमें सबसे ज्यादा गौर करने कि आवश्यकता है और वो यह कि जोड़ियां ऊपर से बन कर आती है, लेकिन अपने कर्तव्यों का सही तरीके से निर्वहन करते हुए उस रिश्ते को निभाने कि जिम्मेदारी पति-पत्नी के ऊपर होती है। यदि आप अपने रिश्ते को समझदारी और पूरी ईमानदारी से निभाएंगे तो गुण चाहे कितने भी क्यों न मिले हो आपका रिश्ता हमेशा बना रहेगा। वहीं अगर आप अपने साथी के साथ तालमेल बनाने की कोशिश ही नहीं करेंगे तो चाहे 36 गुण ही क्यों न मिले हों आपका रिश्ता नहीं टिक पायेगा।
कैसे करते है गुण मिलान?
ज्योतिष शास्त्र में यह बताया गया है कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की जो स्थिति होती है उसका प्रभाव पूरी उम्र उस व्यक्ति पर रहता है। व्यक्ति के जीवन की सारी घटनाओं के तार उस समय की ग्रह स्थिति से ही जुडे़ हुए होते हैं।
वैदिक ज्योतिष प्रणाली में, वर-वधु गुण मिलान के लिए अष्टकुट विधि का प्रयोग किया जाता है। इस पद्धति के अनुसार दोनों के बीच की अनुकूलता की जांच करने के लिए आठ अलग-अलग मापदंडों को माना जाता है, जो विभिन्न बिंदूओं का मिलान करते हैं। इस विधि के अनुसार अष्टकूटों का मिलान करते समय भावी वर-वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति को देखा जाता है। अष्टकूटों के आठ प्रकार निम्नलिखित हैं -
1) वर्ण- वर्ण अर्थात जाति। इस कूट के अंतर्गत मिलान प्रक्रिया के दौरान दोनों पक्षों का वर्ण यानि जाति मिलाई जाती है। कुंडली मिलान करते समय 4 वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र का ध्यान रखा जाता है।
2) वश्य- वश्य का अर्थ होता है प्रेम/आकर्षण। इस कूट के अंतर्गत दोनों पक्षों का एक-दूसरे की तरफ आकर्षण देखा जाता है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं – द्विपद, चतुष्पद, कीट, वनचर तथा जलच।
3) तारा- तारा मिलान के लिए वर-वधु के जन्म नक्षत्र का विश्लेषण करते हैं। जन्म कुंडली में 9 प्रकार के तारों की चर्चा की गयी होती है और इनकी गणना जन्म के वक़्त उपस्थित नक्षत्रों से की जाती है। आपको बता दें कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नक्षत्रों की कुल संख्या 27 है और इन 27 नक्षत्रों को 9 तारो में बांटा गया है।
4) योनि- सभी जन्म कुंडली में 27 नक्षत्रों में से किसी न किसी नक्षत्र का संबंध किसी न किसी पशु के साथ किया जाता है, जिसे किसी जीव की योनि कहा जाता है। योनि मिलान के लिए वर और वधू की योनि से संबधित जीवों के एक होने की स्थिति में 4 में से 4, 4 में से 3 मित्र होने की स्थिति में, 4 में से 2 सम होने की स्थिति में, 4 में से 1 शत्रु होने की स्थिति में और 4 में से 0 प्रबल शत्रु होने की स्थिति में अंक दिए जाते हैं।
5) ग्रह-मैत्री- ग्रह मैत्री करते समय राशि के स्वामी ग्रह को देखा जाता है। सभी राशि का एक स्वामी होता है। कुंडली मिलान करते समय दोनों पक्षों के बीच मित्रता, समता और शत्रुता को निश्चित किया गया है।
- मेष और वृश्चिक का स्वामी मंगल
- वृष और तुला का स्वामी शुक्र
- मिथुन और कन्या का स्वामी बुध
- कर्क का स्वामी चन्द्रमा
- सिंह का स्वामी सूर्य
- धनु और मीन का स्वामी बृहस्पति
- मकर और कुंभ का स्वामी शनि
6) गण- हर व्यक्ति का एक जन्म नक्षत्र होता है और उस जन्म नक्षत्र को ही व्यक्ति का गण मानते हैं। गण तीन प्रकार के होते हैं- देव गण, मानव गण और राक्षस गण। सभी गण 9 नक्षत्रों से सम्बन्ध रखते हैं– -देव गण से 9 नक्षत्र, मानव गण से 9 नक्षत्र और राक्षस गण से 9 नक्षत्र संबंध रखते हैं। कुंडली मिलान में वर और वधू दोनों के गण को मिलाकर अंक देते हैं।
7) भकूट- वर-वधु के चंद्रमा के लक्षणों पर आधारित भकूट को राशि कूट के नाम से भी जाना जाता है। इस मिलान के अंतर्गत वर और वधु की कुंडली में चंद्रमा की नियुक्ति का विश्लेषण करते हैं। यदि भकूट मिलते हैं तो राशियों के बीच मित्रता रहती है।
8) नाड़ी- कुंडली मिलान में वर-वधु के बीच नाङी के मिलने पर बच्चों और मृत्य का पता चलता है। नाड़ी तीन तरह की होती है- आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी और अंत नाड़ी। किसी नक्षत्र में चन्द्रमा की उपस्थिति से ही उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। कुल 27 नक्षत्रों में से हर नाड़ी को 9 विशेष नक्षत्र प्राप्त हुए हैं।
ऊपर दिए गए अष्टकूटों को एक से आठ तक गुण प्रदान किये गए हैं, जैसे वर्ण को 1, नाड़ी को 8 और इनके बीच में बाकी सबको 2 से लेकर 7 गुण दिए गए हैं। इन गुणों को जोड़ने पर कुल योग 36 बनता है और इन्हीं 36 गुणों के आधार पर कुंडलियों का मिलान किया जाता है।
कुंडली मिलान की अष्टकूट पद्धति में, गुणों की अधिकतम संख्या 36 होती है। आईये जानते हैं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विवाह के लिए कितने गुणों का मिलना शुभ होता है और कितना अशुभ होता है -
- 18 या इससे कम गुणों के मिलने पर- गुण मिलान में 18 या इससे कम गुणों के मिलने पर अधिकांशतः विवाह के असफल होने की संभावना होती है।
- 18-24 गुणों के मिलने पर- ज्योतिष की गणना के अनुसार 18 से लेकर 24 गुणों के मिलने पर विवाह सफल रहती है लेकिन इसमें उतार-चढ़ाव की संभावनाएं ज्यादा होती है।
- 24-32 गुणों के मिलने पर- गुण मिलान के समय 24-32 गुण मिलने पर विवाह के सफल होने की संभावना मानी जाती है।
- 32 से 36 गुणों के मिलने पर- ज्योतिष के अनुसार यदि वर वधु गुण मिलान में 32 से 36 गुण मिलते हैं उनकी शादी को बहुत शुभ माना जाता है और ऐसा भी माना जाता है कि इसमें ज्यादा समस्याएं उत्पन्न नहीं होती हैं।
वर वधु गुण मिलान में यदि किसी एक की कुंडली में मंगल दोष उपस्थित हो तो वैसी स्थिति में अष्टकूट मिलान नहीं करना चाहिए। एक और चीज़ जिसका हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए वो ये कि मंगलिक और अमंगलिक जोड़े के बीच कभी भी अष्टकूट द्वारा कुंडली मिलान नहीं करना चाहिये।
एस्ट्रोसेज की तरफ से क्या है खास
एस्ट्रोसेज द्वारा दिया गया यह सॉफ़्टवेयर प्राचीन और वैज्ञानिक वैदिक ज्योतिष के कुंडली मिलान सिद्धान्त पर आधारित है। वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतो के आधार पर कार्य करने वाला यह सॉफ्टवेयर नक्षत्रों (चंद्रमा नक्षत्र) के आधार पर गुण मिलान करता है। अधिकतम 36 गुणों में से जितने ज्यादा गुण मिलते हैं, विवाह के लिए उतना ही बेहतर रहता है। एस्ट्रोसेज पर आप बिना किसी खर्च के होने वाले वर-वधु का फ्री में गुण मिलान कर सकते हैं। हमारे इस सॉफ्टवेयर द्वारा न केवल शुभ संकेतों बल्कि आपके दोष आदि के बारे में भी जानकारी दी जाती है।
वैसे लोग जिन्हें अपने जन्म तिथि और जन्म समय आदि की जानकारी नहीं है, उनके लिए अब हमारे वेबसाइट पर नाम के अनुसार कुंडली मिलान करने की सुविधा भी प्रदान की जा रही है।