कुंडली में राजयोग: ज्योतिष सीखें (भाग-14)
नमस्कार। एस्ट्रोसेज के 2 मिनट के कोर्स में फिर से स्वागत है। आज बात करेंगे राजयोग की। राजयोग का मतलब कोई राजा बनने से नहीं बल्कि यश, सफलता और समृद्धि के योग से है। राजयोग कोई एक योग का नाम नहीं बल्कि योगों के प्रकार है। जितने ज्यादा राजयोग कुण्डली में होते हैं उतना ही सफल और समृद्ध व्यक्ति जीवन में होता है।
कुछ विशेष ग्रह स्थितियों को याद रखने में आसानी हो इसलिए भारतीय ज्योतिष में योगों को नाम दे दिए गए हैं। जैसे अगर चंद्र और गुरु आपस में केन्द्र में हों तो उसे गजकेसरी राजयोग कह दिया जाता है। मंगल, बुध, गुरु, शुक्र या शनि केन्द्र में अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में हों तो उसे पंच महापुरुष योग का नाम दिया गया है। मैनें जो पहले 15 नियम बताए थे उनसे राजयोग को समझने में आसानी होगी। इसके अलावा आज पाराशरीय राजयोग बताता हूं। पाराशरी राजयोग को केन्द्र त्रिकोण राजयोग भी कहते हैं।
अगर कोई केन्द्र का स्वामी किसी त्रिकोण के स्वामी से सम्बन्ध बनाता है तो उसे राजयोग कहते हैं। केन्द्र मतलब 4, 7, 10 भाव और त्रिकोण मतलब 5 और 9 भाव। पहला भाव केन्द्र और त्रिकोण दोनों माना जाता है। जैसा पहले बताया दो ग्रहों के बीच संबध का मतलब -
- युति यानि एक दूसरे को देखना
- दृष्टि यानि एक साथ बैठना
- परिवर्तन यानि एक दूसरे की राशि में बैठना
जैसे मेष राशि वाले के लिए त्रिकोण यानि पांचवे और नवें भाव के स्वामी हैं सूर्य और गुरु। अगर इनका पहले भाव के स्वामी यानि मंगल, या चौथे भाव का स्वामी यानि चंद्र, या सातवें भाव का स्वामी यानि शुक्र या दसवें भाव का स्वामी यानि शनि से युति, दृष्टि या परिवर्तन हो तो पाराशरी राजयोग बनेगा। जितने ज्यादा संबंध होंगे उतने ज्यादा राजयोग होंगे।
इसके अलावा कभी कभी एक ही ग्रह केन्द्र और त्रिकोण दोनों का स्वामी हो जाता है। कर्क लग्न के लिए मंगल त्रिकोण यानि पांचवे भाव और केन्द्र यानि कि दसवें घर को स्वामी होने की वजह से भी पाराशरी राजयोग बनाता है। पाराशरी राजयोग बनाने वाले ग्रह को योगकारक ग्रह कहते हैं और यह ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में विशेष रूप से सफलता, समृद्धि और यश देता है। इस वीडियो में इतना ही। नमस्कार।