पंद्रह सूत्रों की व्याख्या: ज्योतिष सीखें (भाग-12)
उदाहरण
पिछले वीडियो में 15 नियम बताए थे जिससे पता चलता है कि कोई ग्रह शुभ फल देगा या अशुभ। नियम वैसे तो आसान ही हैं पर फिर भी एक उदाहरण देता हूं जिससे नियम और भी स्पष्ट हो जाएंगे। उदाहरण के लिए मंगल को लेते हैं और देखते हैं कि हमारी कुण्डली में मंगल शुभ फल देगा या अशुभ -
मंगल अपनी नीच राशि में है अत: नियम 1 के अनुसार मंगल अशुभ फलदायक हुआ। -1 मंगल अपने मित्र ग्रह चंद्र के साथ है अत: नियम 3 के अनुसार मंगल कुछ शुभ फल देगा। यह थोडा कम महत्वपूर्ण नियम है इसलिए सिर्फ आधा अंक देते हैं। -0.5 मंगल की उच्च मकर राशि है तो अगर मार्गी होकर धनु में होता यानि कि मकर की ओर जा रहा होता तो भी उसे बल मिलता। पर ऐसा नहीं है इसलिए इस कुण्डली पर नियम 4 लागू नहीं होता।
- नियम 5 - लग्नेश शनि है और मंगल शनि का मित्र नहीं है अत: शुभ फल नहीं देगा। -1 = -1.5
- नियम 6 - मंगल त्रिकोण का स्वामी नहीं है। 0
- नियम 7 - मंगल क्रूर ग्रह है और केन्द्र का होने से अपनी अशुभता छोड देगा। +0.5. सिर्फ आधा अंक इसलिए क्योकि मंगल अशुभ ग्रह है और शुभता छाडने का मतलब है न्यॅूट्रल होना न कि शुभ होना। =-1.0
- नियम 8 - परन्तु तृतीय भाव का स्वामी होने से अशुभ परिणाम देगा। -1 = -2
- नियम 9 - उपाच्य भाव में होना मंगल के लिए अच्छा है +1 = -1
- नियम 10 - सामान्यत: ग्रह छठवें घर में शुभ फल नहीं देते पर पाप ग्रह उपाच्य भावों में अपवाद हैं।
- नियम 15 - मंगल सूर्य के पास नहीं है इसलिए अस्त नहीं है। 0
- नियम 12 13 - सिर्फ चंद्र के लिए और 14 सिर्फ बुध राहु और केतु के लिए है इसलिए यहां मंगल के लिए उन्हें हमने छोड दिया है।
अगर सभी धन और ऋण को जोडें तो एक ऋणात्मक राशि मिलेगी, इससे पता चलता है कि मूलत: मंगल अशुभ फल देगा। अशुभ का मतलब है कि मंगल के अपने कारकत्व और मंगल जिस भाव का स्वामी है उनके कारकत्व को नुकसान पहुंचेगा। इसी तरह हमें बाकि के ग्रहों को देखना चाहिए।