गोचरफल: ज्योतिष सीखें (भाग-21)
गोचर फल के सात महत्वपूर्ण नियम
दशा के अलावा घटना का समय पता लगाने की एक और पद्धति है गोचर। गोचर को अंग्रेजी में ट्रांजिट कहते हैं। वर्तमान समय के ग्रहों की स्थिति का जन्म कुण्डली पर असर देखेने को गोचर कहते हैं। जैसे मान लिजिए की आपका लग्न सिंह और राशि कन्या है। आजकल शनि तुला राशि में चल रहा है तो ज्योतिष की भाषा में यह कहा जाएगा कि शनि सिंह लग्न से तीसरे में और कन्या राशि से दूसरे में गोचर कर रहा है क्योंकि तुला सिंह से तीसरी और कन्या से दूसरी राशि है।
गोचर देखने की अनेक पद्धतियां हैं। आज गोचर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताता हूं, ध्यान से सुनो।
- जब हमें भाव का प्रभाव देखना है तो हमेशा लग्न से गोचर देखें। जैसे अगर आपकी सिंह लग्न और कन्या राशि हो और शनि तुला में हो तो तीसरे भाव का फल ज्यादा मिलेगा क्योंकि शनि लग्न से तीसरे भाव में है।
- अगर यह देखना है कि शुभ फल मिलेगा कि अशुभ तो चंद्र से देखें। सामान्य तौर पर पाप ग्रह और चंद्र खुद जन्म चंद्र से उपाच्य भावों में सबसे बढिया फल देते हैं। सभी ग्रहो की चंद्र से गोचर करने पर शुभ और अशुभ स्थिति ब्लैक बोर्ड पर देखें और नोट कर लें।
- सूर्य, मंगल, गुरु और शनि का चंद्र से 12 वें भाव पर, आठवें भाव पर और पहले भाव पर गोचर विशेषकर अशुभ होता है। चंद्र से 12वें, पहले और दूसरे भाव में शनि के गोचर को साढे साती कहा जाता है।
- ग्रह न सिर्फ उन भावों का फल देते हैं जहां वे लग्न से बैठे होते हैं बल्कि उन भावों का भी फल देते हैं जिन जिन भावों को वे देखते हैं।
- अगर कोई ग्रह उस राशि में गोचर करे जिसमें वह जन्म कुण्डली में हो तो अपने फल को बढा देता है।
- दशा गोचर से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। अगर किसी फल के बारे में दशा न बताए तो सिर्फ गोचर से फल नहीं मिल सकता। इसलिए बिना दशा देखे सिर्फ गोचर देखकर कभी भविष्यवाणि नहीं करनी चाहिए।
- अगर दशा प्रारम्भ होने के समय गोचर बढिया न हो तो दशा से शुभ फल नहीं मिलता।
इन महत्वपूर्ण नियमों का अभ्यास करें। अगले एपीसोड तक, नमस्कार।